गुरुवार

राष्ट्रीय भ्रष्टाचार : निवारण लोकपाल ?

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भ्रष्‍टाचार के खिलाफ अनशन पर बैठे अन्ना हजारे के अनशन का आज नौवां दिन है। अन्ना के समर्थन में रामलीला ग्राउंड में देशभर से समर्थक जुट रहे हैं।मनोज जैसवाल :भारत में भ्रष्टाचार को बनाए रखने वाला कोई एक सबसे बड़ा कारण है, तो वह है भारत के नियंत्रक तंत्र की भारी विफलता। देश में ऐसा कोई भ्रष्टाचार विरोधी संस्थान नहीं है, जिसके पास जरूरी ताकत, संसाधन और स्वायत्तता
 हो। आमतौर पर भ्रष्टाचार के ज्यादातर मामलों की जांच पुलिस करती है, जो सीधे हमारे मंत्रियों और नौकरशाहों के अधीन है। अक्सर ये लोग खुद ही अभियुक्त होते हैं। सीबीआई की मुश्किल भी कुछ ऐसी ही है। केंद्र सरकार के अधिकारियों के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) है। लेकिन सिद्धांतत: भले ही सीवीसी सरकार से स्वायत्त हो, उसके पास साधनों और कर्मचारियों की बेहद कमी है और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के खिलाफ जांच करने के लिए उसे सरकार की अनुमति चाहिए होती है, जो उसे मुश्किल से मिलती है। इसके अलावा सीवीसी को दंडित करने का कोई हक नहीं है। यह हक भी सरकार का ही है। सीएजी हालांकि स्वायत्त संस्था है और उसके पास कर्मचारियों की कोई कमी नहीं है, लेकिन उसका दायरा सीमित है और आमतौर पर उसे अपनी रपट संसद को सौंपनी पड़ती है, जहां उसका राजनीतिकरण हो जाता है और उसे दबा दिया जाता है। संसद के सामने सीएजी की रपट आने में पांच-छह साल लग जाते हैं और तब तक अक्सर सरकार बदल चुकी होती है। पिछले दो दशकों में सीएजी ने कई गंभीर मुद्दे उठाने वाली रपटें प्रस्तुत की हैं, जो संसद की लाइब्रेरी में दबी हुई हैं। 2-जी और राष्ट्रमंडल रिपोर्ट का भी वही हश्र होता, लेकिन सीएजी ने बजाय संसद को सौंपने के प्रेस कांफ्रेंस कर डाली, जिससे मीडिया में हंगामा हो गया। हालांकि इसे संसद के विशेषाधिकारों का उल्लंघन माना जा सकता है।
कुछ राज्यों में लोकायुक्त एक स्वायत्त संस्था है, लेकिन कुछ अपवादों को छोड़कर उनके पास अपना कोई जांच करने वाला स्टाफ नहीं है और उन्हें राज्य की पुलिस पर निर्भर करना पड़ता है जो कि राज्य सरकार के अधीन होती है। उनका दायरा भी काफी सीमित होता है। मसलन, दिल्ली के लोकायुक्त सिर्फ मंत्रियों के खिलाफ जांच कर सकते हैं, लेकिन नौकरशाहों के खिलाफ नहीं, जबकि भ्रष्टाचार के मामलों में दोनों प्राय: साथ-साथ ही लिप्त होते हैं। यह साफ है कि भ्रष्टाचार से निपटने के लिए, स्वतंत्र और शक्तिशाली संस्थाएं बनाने के लिए, मजबूत कानूनों की जरूरत है। लेकिन कुछ चीजों का ध्यान रखना पड़ेगा, ताकि हम और बुरी स्थिति में न पहुंच पाएं।
पहली बात यह है कि भ्रष्टाचार विरोधी संस्थाएं उन लोगों से स्वायत्त हों, जिनके खिलाफ उन्हें जांच करनी है, लेकिन उनकी पर्याप्त जवाबदेही भी होनी चाहिए, ताकि सत्ता का जरूरत से ज्यादा केंद्रीकरण नहीं हो जाए। हर भ्रष्टाचार विरोधी संस्था उसी तरह जवाबदेह हो, जिस तरह की जवाबदेही वह दूसरी संस्थाओं से चाहती है। दूसरी बात, अगर कोई लोकतांत्रिक संस्था कमजोर है या गड़बड़ करती है, तो इसका विकल्प उसे मजबूत करना ही है। समानांतर नियामक प्रक्रिया को स्थापित करना कोई इलाज नहीं है, क्योंकि ऐसा समानांतर तंत्र खुद भ्रष्ट हो सकता है।
हमारी नजर में भ्रष्टाचार से निपटने और शिकायत निवारण के लिए कुछ स्वायत्त संस्थाओं की जरूरत है।
मसलन, राष्ट्रीय भ्रष्टाचार निवारण लोकपाल - इसका काम निर्वाचित प्रतिनिधियों, जिनमें प्रधानमंत्री (कुछ शर्तों के साथ) मंत्री और सांसद, वरिष्ठ नौकरशाहों और निजी और सामाजिक क्षेत्र के भ्रष्टाचार की जांच करना हो। लोकपाल आर्थिक और प्रशासनिक रूप से सरकार से स्वायत्त हो और उसे जांच करने तथा मुकदमा कायम करने का अधिकार होगा।
केंद्रीय सतर्कता लोकपाल- केंद्रीय सतर्कता लोकपाल को ऐसी शक्तियां दी जाएं, ताकि वह स्वतंत्रतापूर्वक और बिना किसी पूर्व अनुमति के मध्य स्तरीय नौकरशाही के खिलाफ जांच कर सके और कार्रवाई कर सके। उसे इस काम के लिए जरूरी स्टाफ भी दिया जाए।
शिकायत निवारण लोकपाल - भारत के हर आम नागरिक को जिस चीज की कमी खलती है, वह है उनकी रोजमर्रा की शिकायतों से निपटने के लिए कोई प्रभावशाली संस्था की। इन शिकायतों में पेंशन न मिलना, खराब राशन मिलना, टूटी सड़कें, पानी की कमी, सफाई और ड्रेनेज का गलत इंतजाम वगैरह ढेर सारी चीजें शामिल हैं। इस तरह की सभी शिकायतों का प्रभावशाली निराकरण करने के लिए ऐसे विकेंद्रीकृत तंत्र की जरूरत है, जो निश्चित समयावधि में शिकायतों का निवारण करे। नरेगा जैसे कार्यक्रमों के सफल शिकायत निवारण तंत्र को पैमाना बनाते हुए जनशिकायत निवारण के लिए एक स्वतंत्र और शक्तिशाली तंत्र बनाना जरूरी है।
लोकरक्षक कानून- जनहित में रहस्योद्घाटन करने वाले लोगों को संरक्षण देने के लिए एक ताकतवर कानून बनाने की जरूरत है।
पिछले दिनों जिस तरह से कई बड़े घोटालों ने देश को हिला दिया, उसे देखते हुए एक प्रभावशाली भ्रष्टाचार विरोधी कानून की जरूरत है। लोकपाल बिल संसद में पिछले 40 वर्षो से लटका हुआ है। इसमें कोई शक नहीं कि देश के लिए एक सशक्त और प्रभावशाली लोकपाल की जरूरत है, लेकिन जल्दबाजी में हमें सलाह-मशविरे और बहस से मुंह नहीं मोड़ लेना चाहिए। भ्रष्टाचार विरोधी प्रभावशाली तंत्र का निर्माण बहुत सावधानी से, सोच-समझकर और चर्चा के बाद ही किया जाना चाहिए।
भारत एक विशाल देश है और जिन समस्याओं से हम जूझ रहे हैं, वे बेहद जटिल हैं। कोई एक तुरंत समाधान या अतिशक्तिशाली संस्था एक साफ-सुथरी सक्रिय और समावेशी लोकतंत्र का निर्माण नहीं कर सकती। हमारे संविधान के बुनियादी ढांचे के आधार पर एक सोचा-समझा और गहरे विचार विमर्श के बाद निकला कोई समाधान ही हमारे लिए उपयोगी हो सकता है। इसे लगातार संवाद और सलाह से पाया जा सकता है। संसद भी कोई शॉर्टकट नहीं अपना सकती। उसे बहस के लिए संवैधानिक आधार पर एक मंच प्रदान करना चाहिए, उसे सारे देश से राय मंगवानी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारत को एक शक्तिशाली भ्रष्टाचार विरोधी कानून मिले।


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