मनोज जैसवाल : भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था धर्म के विपरीत आचरण करने वाला, अन्याय और अधर्म में लिप्त व्यक्ति भले ही निकट संबंधी हो, पर उसे निश्चय ही दंड मिलना चाहिए।
भीम पुत्र घटोत्कच आसुरी प्रवृत्ति का था। इसके बावजूद वह पराक्रमी योद्धा था। उसने पांडवों की ओर से कौरवों से युद्ध किया और उनको नाकों चने चबाए। एक दिन युद्ध में कर्ण ने अजेय अमोघ शक्ति का प्रयोग करके घटोत्कच का वध कर दिया। घटोत्कच जैसे पराक्रमी का वध होते ही पांडव सेना में शोक व्याप्त हो गया। किंतु श्रीकृष्ण वध की सूचना मिलते ही आनंदमग्न हो उठे। श्रीकृष्ण को शोक की जगह आनंद मनाते देख आश्चर्य से अर्जुन ने पूछ लिया, मधुसूदन, आपको शोक की जगह प्रसन्नता क्यों हो रही है? श्रीकृष्ण बोले, धनंजय, इसके दो कारण हैं। पहला तो यह कि जिस वैजयंती शक्ति के आघात से कर्ण ने घटोत्कच का वध किया है, वह उससे तुम्हारा जीवन भी ले सकता था। अब तुम अबध्य हो गए। दूसरा कारण यह है कि घटोत्कच असुर और धर्मविरोधी था। यदि कर्ण के द्वारा उसका अंत नहीं होता, तो मुझे अपने हाथों उसे एक न एक दिन मारना होता।
भीष्म पितामह ने एक बार श्रीकृष्ण की निष्पक्षता का वर्णन करते हुए युधिष्ठिर से कहा, श्रीकृष्ण का जन्म धर्म की रक्षा के लिए हुआ है। शिशुपाल उनकी बुआ का पुत्र था, किंतु उसके बढ़ते पापाचार को देखकर भगवान ने उसके वध में भी कोई संकोच नहीं किया। ऐसे निष्पक्ष व्यक्ति पर पांडवों के साथ पक्षपात का आरोप नहीं लगाया जा सकता।
भीम पुत्र घटोत्कच आसुरी प्रवृत्ति का था। इसके बावजूद वह पराक्रमी योद्धा था। उसने पांडवों की ओर से कौरवों से युद्ध किया और उनको नाकों चने चबाए। एक दिन युद्ध में कर्ण ने अजेय अमोघ शक्ति का प्रयोग करके घटोत्कच का वध कर दिया। घटोत्कच जैसे पराक्रमी का वध होते ही पांडव सेना में शोक व्याप्त हो गया। किंतु श्रीकृष्ण वध की सूचना मिलते ही आनंदमग्न हो उठे। श्रीकृष्ण को शोक की जगह आनंद मनाते देख आश्चर्य से अर्जुन ने पूछ लिया, मधुसूदन, आपको शोक की जगह प्रसन्नता क्यों हो रही है? श्रीकृष्ण बोले, धनंजय, इसके दो कारण हैं। पहला तो यह कि जिस वैजयंती शक्ति के आघात से कर्ण ने घटोत्कच का वध किया है, वह उससे तुम्हारा जीवन भी ले सकता था। अब तुम अबध्य हो गए। दूसरा कारण यह है कि घटोत्कच असुर और धर्मविरोधी था। यदि कर्ण के द्वारा उसका अंत नहीं होता, तो मुझे अपने हाथों उसे एक न एक दिन मारना होता।
भीष्म पितामह ने एक बार श्रीकृष्ण की निष्पक्षता का वर्णन करते हुए युधिष्ठिर से कहा, श्रीकृष्ण का जन्म धर्म की रक्षा के लिए हुआ है। शिशुपाल उनकी बुआ का पुत्र था, किंतु उसके बढ़ते पापाचार को देखकर भगवान ने उसके वध में भी कोई संकोच नहीं किया। ऐसे निष्पक्ष व्यक्ति पर पांडवों के साथ पक्षपात का आरोप नहीं लगाया जा सकता।
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