मनोज जैसवाल : इस वक्त विश्व के सभी देश या तो अपनी इकोनॉमी को बचाने में या गिरती इकोनॉमी को उबारने में लगे हैं। इस प्रक्रिया में अब इंटरनैशनल इकोनॉमी में एक नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है। यह ट्रेंड है अपनी करेंसी यानी मुद्रा को गिराने, उठाने या एक स्तर पर कायम रखने की जद्दोजहद। अमेरिका ने 2008 में यह ट्रेंड शुरू किया था, जब उसकी इकोनॉमी बुरी तरह मंदी की चपेट में थी। उसके बाद यूरोपीय देशों ने इसे अपनाया, फिर चीन ने। अब जापान भी अपनी इकोनॉमी को स्लोडाउन से उबारने के लिए करेंसी में उतार-चढ़ाव करने का सहारा ले रहा है। इसे करेंसी वार का नाम दिया गया है। भारत अब तक इंटरनैशनल करेंसी मार्केट में सामान्य कारोबार का पक्षधर रहा है। मगर मौजूदा परिस्थितियां खुल कह रही है कि जल्द ही हमें भी करेंसी वार का सामना करना पड़ेगा। बेहतर होगा कि भारत अभी से इसके लिये खुद को तैयार करे। उसे भी इसमें शामिल हो जाना चाहिए। इसे राजनीतिक चश्मे से देखने की कोई जरूरत नहीं है। इस राह में विशुद्ध आर्थिक सोच के जरिये बढ़ना ही भारत के लिये फ़ायदेमंद रहेगा।
क्या है करेंसी वार?
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में उसकी करेंसी की प्रमुख भूमिका होती है। घरेलू मार्केट से लेकर इंटरनैशनल मार्केट तक दामों में उतार-चढ़ाव करेंसी की वैल्यू ही तय करती है। भारत और बाकी देशों का आपसी कारोबार डॉलर पर ही निर्भर करता है। ऐसे में डॉलर के मुकाबले रुपये की जितनी वैल्यू होगी, उसी के आधार पर उसका इंपोर्ट या एक्सपोर्ट मूल्य तय होता है। साल 2008 में जब अमेरिका में स्लोडाउन आया तो उसने डॉलर को मजबूत करने और बाकी मुद्राओं को कमजोर करना आरंभ कर दिया। एक डॉलर की वैल्यू हो गई 55 रुपये। इसका मतलब यह हुआ कि अब भारत जब भी अमेरिका से कोई वस्तु डॉलर में खरीदेगा तो उसे एक डॉलर की तुलना में ज्यादा रुपये देने होंगे। इसके दो फायदे होंगे। एक तो अमेरिका में ज्यादा मनी फ्लो होगा। दूसरे भारत को इंपोर्ट पर ज्यादा पैसा खर्च करना होगा। इससे उसकी इकोनॉमी कमजोर होगी और ज्यादा विदेशी मुद्रा की जरूरत होगी। इसके चलते डॉलर की डिमांड बढ़ेगी और वह ज्यादा कीमत पर बिकेगा।
अमेरिका, चीन, जापान
इसकी देखादेखी चीन ने अलग प्रयोग किया। उसने अपनी इकोनॉमी को देखते हुए अपनी करेंसी का एक तर्कसंगत लेवल तय किया ताकि उसका विदेशी कारोबार स्थिर रहे, महंगाई पर नियंत्रण बना रहे और विकास की गति को तेज किया जा सके। इस बारे में चीन की आलोचना भी हुई। चीन ने तब कहा था कि आने वाले समय सभी को इसकी जरूरत पड़ेगी। अब जापान भी इस दौड़ में शामिल हो गया है। उसने अपनी करेंसी येन को डॉलर के मुकाबले गिराना शुरू कर दिया। अभी एक डॉलर की कीमत 100 येन से भी ऊपर चली गई है। जापान को इस वक्त चाहत ज्यादा विदेशी निवेश की है। वह अपने यहां मनी फ्लो बढ़ाना चाहता है। उसने साफ कह दिया है कि जब स्थिति ठीक हो जाएगी, वह अपनी करेंसी का लेवल ठीक कर लेगा। इंटरनैशनल इकोनॉमी में शुरू हुये इस करेंसी वार का दबाव भारत पर यह आना शुरू हो गया है कि वह एक लेवल से ज्यादा अपनी करेंसी को गिरने न दे।
यह बात भी दबी जुबान से होने लगी है कि भारत को अपनी इकोनॉमी, वित्तीय घाटे, महंगाई और विदेशीव्यापार को देखते हुये अपनी करेंसी का सही और तर्कसंगत लेवल तय करना पड़ेगा। डॉलर के मुकाबले रुपये का कौन सा लेवल भारत की इकोनॉमी के लिये ठीक रहेगा, इस पर भारत के दिग्गज अर्थशास्त्री अभी खुले तौर परकुछ बोल नहीं रहे है। उनके सामने सबसे बड़ा खतरा अमेरिका या चीन नहीं, देश की विपक्षी पार्टियां हैं, जोचुनावी मंच पर इस मुद्दे को भुना सकती है। लेकिन यह वक्त की दरकार है। करेंसी वार में भारत को शामिल होनाही पड़ेगा। इस काम में भारत जितनी देर करेगा, उतना नुकसान उसे उठाना पड़ सकता है। ऐसे में बेहतर है कि भारत की सभी राजनीतिक पार्टियां देश की वित्तीय सेहत की भलाई के लिये इस पर राजनीति न करें। संभव है,ऐसी राजनीति से उनको कुछ फायदा हो जाए, मगर आर्थिक रूप से देश को बड़ा नुकसान होना तय है।
मुद्रा और राजनीति
आम आदमी फिलहाल करेंसी वार की तकनीकी को नहीं जानता है। ऐसे में राजनीतिक पार्टियां रुपये की कीमत में आए बदलाव को सियासी मुद्दा बना सकती हैं। करेंसी वार को नेगेटिव पैकेजिंग देकर कहा जा सकता है कि यहदेश और आम आदमी के लिये ठीक नहीं है। हमारे देश में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि हमें किसी भी नई बात को अपनाने में काफी वक्त लगता है। सत्ता में बैठी पार्टी को इस बात का डर हमेशा लगा रहता है कि पता नहीं आमलोग या वोटर इस नीति को लेकर क्या प्रतिक्रिया देगा। इसका राजनीतिक लाभ उसको मिलेगा या विपक्षी दलों के खाते में चला जाएगा। यही कारण है कि कई अहम फैसले लेने के बाद उन्हें लागू करने में काफी समय लगजाता है। मगर करेंसी वार जिस तरह से आगे बढ़ रहा है, उसको देखते हुए इसे टालते रहना ठीक नहीं होगा। यहअर्थशास्त्रियों और नीति निर्धारकों पर निर्भर है कि वे इस मामले को कैसे लेते हैं और किस तरह से आम आदमी केबीच इसे ले जाते हैं। यह बात तो तय है कि अगर करेंसी वार पर राजनीति हुई, नीति बनाने के साथ फैसला लेने में देरी हुई तो इसका खामियाजा भारतीय अर्थव्यवस्था को तो भुगतना ही होगा, साथ में इसकी गाज सीधे तौर पर आम आदमी पर गिरेगी।
आज करेंसी वार को लेकर विश्व भर में नए प्रयोग हो रहे हैं,दिन-पर दिन अपने देश की मुद्रा का मूल्य निचे गिरते जा रहा है.भारत को भी गम्भीर होना ही पडेगा.सार्थक आलेख.
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने आपका आभार राजेंद्र जी।
हटाएंउपयोगी जानकारी
जवाब देंहटाएंAjay Sharma जी, आपका आभार।
हटाएंबहुत उपयोगी जानकारी
जवाब देंहटाएंDinesh shukla जी,आपका आभार।
हटाएंGreat...
जवाब देंहटाएंअर्चना अग्रवाल जी,आपका आभार।
हटाएंबहुत उपयोगी जानकारी आभार मनोज जी.
जवाब देंहटाएंबाबू राम जी,आपका आभार।
हटाएंआपका आभार।
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