मनोज जैसवाल-नई दिल्ली. महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति को सेलिब्रेट करने के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इतिहास में यदि हम झांकें तो पाएंगे कि राजनीतिक कारणों से महिला दिवस मनाया जाने लगा था। इसकी शुरुआत पुराने रूस से की गई थी। धीरे-धीरे इसे पूरी दुनिया के लोगों ने स्वीकार कर लिया और अब इस दिन छुट्टी ही रखी जाने लगी है।
अब राजनीतिक कारण तो रहे नहीं लेकिन पुरुष महिलाओं के सम्मान में इसे हर साल मनाते हैं, महिलाएं तो खैर इसे अभूतपूर्व दिन मानती हैं। यह मदर्स डे और वेलेंटाइन डे जैसा ही मनाया जाने लगा है। यूएन में जाकर महिला दिवस को और तवज्जो मिली और दुनियाभर में इसे महिलाओं को राजनीतिक और सामाजिक जागृति प्रदान करने का सहारा बना लिया गया।
इस दिवस को पहले स्प्रिंग हॉलीडे के रूप में भी मनाया जाता है। सबसे पहला महिला दिवस 28 फरवरी 1909 को मनाया गया था। इसे अंतरराष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करने के लिए न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक, आर्थिक और अन्य तरीकों से महिलाओं को स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए कोशिशें भी की गईं।
8 मार्च 1857 को न्यूयॉर्क में महिलाओं ने टेक्सटाइल फैक्टरीज के खिलाफ आंदोलन किया। उन्होंने कम तनख्वाह और काम की शर्तो में सुधार के लिए आग्रह किया था। वह आंदोलन पुलिस के अत्याचारों के चलते दबा दिया गया लेकिन दो साल बाद इसी दिन फिर से महिलाओं ने अपना लेबर यूनियन बनाया। ऐसे ही आंदोलनों को अब बाकायदा आकार मिल चुका था और 1908 में न्यूयॉर्क में 15000 महिलाओं ने प्रदर्शन कर काम के घंटे कम करने, अच्छी तनख्वाह और वोटिंग के अधिकार पाने की मांगें रखीं।
1910 में कॉपनहेगन में पहला अंतरराष्ट्रीय महिला सम्मेलन रखा गया। वहां जग्तवेज में एक भवन बनाया गया और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाना तय कर लिया गया। यह विचार जर्मनी की खास महिला आंदोलनकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता क्लारा जेट्किन ने रखा था और इसमें कोई खास तिथि तय नहीं की गई थी। अगले ही साल लगभग 10 लाख महिलाएं ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी, और स्विट्जरलैंड में एकत्र हुईं। न्यूयॉर्क की ट्रायएंगल शर्टवेस्ट फैक्टरी में आग लगने के कारण 140 गारमेंट वर्कर्स की मृत्यु हो गई और इसका आरोप फैक्टरियों में कमी पर लगाया गया। यूरोप की महिलाओं ने प्रथम विश्वयुद्ध की पूर्व संध्या पर 8 मार्च 1913 को एक रैली निकाली जिसमें शांति की कामना की गई थी।
पश्चिम में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 1910 से 20 तक मनाया गया लेकिन इसके बाद ज्यादा जोश नहीं रहा। 1960 के दशक में एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की जरूरत महसूस की गई ताकि महिलाओं को सशक्त किया जा सके। 1917 की रूसी क्रांति की ओर कदम बढ़ाने वाला प्रदर्शन महिलाओं के नाम ही लिखा गया है। आगे चलकर उन्होंने भी क्रांति के स्वरूप को निखारने के लिए प्रयास किए।
कुछ-कुछ बातें -
महिलाएं रास्ते में खो जाने से इस कदर डरती हैं कि अनजाना शॉर्टकट लेने की बजाए, वे पहचाने रास्ते का कई मील लम्बा चक्कर लगाना पसंद करती हैं।
हर क्षेत्र में महिलाओं का वेतन पुरुषों की तुलना में कम होता है, सिवाए एक क्षेत्र के- मॉडलिंग।
महिलाएं नक्शे को तब तक नहीं समझ पातीं, जब तक वे उसे पहले उस दिशा के मुताबिक न रख लें, जिस पर वे अभी हैं।
फोन की घंटी की महिलाएं अवहेलना नहीं कर पातीं। वे कुछ भी कर रही हों, काम को छोड़कर फोन उठा ही लेंगी।
महिलाओं को वस्तुओं के दाम कम कराना अच्छा लगता है। सेल कैसी भी हो,उसमें उनकी रुचि होगी ही।
मैं कैसी लग रही हूं - इस सवाल का किसी भी महिला को ईमानदार जवाब नहीं चाहिए होता है। महिलाएं यह कतई बर्दाश्त नहीं कर सकतीं कि पार्टी में कोई अन्य महिला उनके जैसी ही ड्रेस पहनकर आए।
manojjaiswalpbt@gmail.com
अब राजनीतिक कारण तो रहे नहीं लेकिन पुरुष महिलाओं के सम्मान में इसे हर साल मनाते हैं, महिलाएं तो खैर इसे अभूतपूर्व दिन मानती हैं। यह मदर्स डे और वेलेंटाइन डे जैसा ही मनाया जाने लगा है। यूएन में जाकर महिला दिवस को और तवज्जो मिली और दुनियाभर में इसे महिलाओं को राजनीतिक और सामाजिक जागृति प्रदान करने का सहारा बना लिया गया।
इस दिवस को पहले स्प्रिंग हॉलीडे के रूप में भी मनाया जाता है। सबसे पहला महिला दिवस 28 फरवरी 1909 को मनाया गया था। इसे अंतरराष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करने के लिए न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक, आर्थिक और अन्य तरीकों से महिलाओं को स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए कोशिशें भी की गईं।
8 मार्च 1857 को न्यूयॉर्क में महिलाओं ने टेक्सटाइल फैक्टरीज के खिलाफ आंदोलन किया। उन्होंने कम तनख्वाह और काम की शर्तो में सुधार के लिए आग्रह किया था। वह आंदोलन पुलिस के अत्याचारों के चलते दबा दिया गया लेकिन दो साल बाद इसी दिन फिर से महिलाओं ने अपना लेबर यूनियन बनाया। ऐसे ही आंदोलनों को अब बाकायदा आकार मिल चुका था और 1908 में न्यूयॉर्क में 15000 महिलाओं ने प्रदर्शन कर काम के घंटे कम करने, अच्छी तनख्वाह और वोटिंग के अधिकार पाने की मांगें रखीं।
1910 में कॉपनहेगन में पहला अंतरराष्ट्रीय महिला सम्मेलन रखा गया। वहां जग्तवेज में एक भवन बनाया गया और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाना तय कर लिया गया। यह विचार जर्मनी की खास महिला आंदोलनकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता क्लारा जेट्किन ने रखा था और इसमें कोई खास तिथि तय नहीं की गई थी। अगले ही साल लगभग 10 लाख महिलाएं ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी, और स्विट्जरलैंड में एकत्र हुईं। न्यूयॉर्क की ट्रायएंगल शर्टवेस्ट फैक्टरी में आग लगने के कारण 140 गारमेंट वर्कर्स की मृत्यु हो गई और इसका आरोप फैक्टरियों में कमी पर लगाया गया। यूरोप की महिलाओं ने प्रथम विश्वयुद्ध की पूर्व संध्या पर 8 मार्च 1913 को एक रैली निकाली जिसमें शांति की कामना की गई थी।
पश्चिम में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 1910 से 20 तक मनाया गया लेकिन इसके बाद ज्यादा जोश नहीं रहा। 1960 के दशक में एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की जरूरत महसूस की गई ताकि महिलाओं को सशक्त किया जा सके। 1917 की रूसी क्रांति की ओर कदम बढ़ाने वाला प्रदर्शन महिलाओं के नाम ही लिखा गया है। आगे चलकर उन्होंने भी क्रांति के स्वरूप को निखारने के लिए प्रयास किए।
कुछ-कुछ बातें -
महिलाएं रास्ते में खो जाने से इस कदर डरती हैं कि अनजाना शॉर्टकट लेने की बजाए, वे पहचाने रास्ते का कई मील लम्बा चक्कर लगाना पसंद करती हैं।
हर क्षेत्र में महिलाओं का वेतन पुरुषों की तुलना में कम होता है, सिवाए एक क्षेत्र के- मॉडलिंग।
महिलाएं नक्शे को तब तक नहीं समझ पातीं, जब तक वे उसे पहले उस दिशा के मुताबिक न रख लें, जिस पर वे अभी हैं।
फोन की घंटी की महिलाएं अवहेलना नहीं कर पातीं। वे कुछ भी कर रही हों, काम को छोड़कर फोन उठा ही लेंगी।
महिलाओं को वस्तुओं के दाम कम कराना अच्छा लगता है। सेल कैसी भी हो,उसमें उनकी रुचि होगी ही।
मैं कैसी लग रही हूं - इस सवाल का किसी भी महिला को ईमानदार जवाब नहीं चाहिए होता है। महिलाएं यह कतई बर्दाश्त नहीं कर सकतीं कि पार्टी में कोई अन्य महिला उनके जैसी ही ड्रेस पहनकर आए।
manojjaiswalpbt@gmail.com
very nice
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