मनोज जैसवाल : एक नइ पोस्ट के साथ सभी लोगो को मेरा प्यार भरा नमस्कार. मेरी पिछली पोस्ट को पसंद करने के लिए आप सभी को धन्यबाद। आखिर बुजुर्ग लोग कहा जाये वृद्ध और अशक्त हो चले लोगों की प्रताड़ना और दुर्दशा की कई घटनाएं पिछले दिनों अखबारों की सुर्खियां बनीं। दिल्ली के रोहिणी इलाके में 85 साल की महिला अपने घर में अकेले रहती थी और पड़ोसियों के सहारे दिन गुजार रही थी। बेटा परिवार के साथ गुड़गांव में रहता है। महिला जिस घर में रहती थी, उसे किराए पर चढ़ाने के लिए बेटे ने मां को घर से निकाल दिया। वह कई दिनों तक इधर-उधर घूमती रही, फिर पड़ोसियों ने वृद्धाश्रम पहुंचा दिया।
ऐसी घटनाएं तकरीबन हर रोज देश भर में घट रही हैं। पुलिस, कानून आदि तो शिकायत मिलने पर ही सामने आते हैं और तब भी ठीक समाधान निकल ही जाए, यह जरूरी नहीं है। वृद्ध लोगों के लिए काम करने वाली हेल्पेज इंडिया भारतीय परिवारों के बदलते स्वरूप और उसमें बुजुर्गो की दशा पर एक अध्ययन किया है। इसके अनुसार, अगर निम्न आर्थिक तबके के परिवारों को देखें, तो यहां बहुएं 64.4 प्रतिशत उत्पीड़क की भूमिका में हैं और बेटे 44 प्रतिशत। इन परिवारों में गाली-गलौज, जोर से चिल्लाने, ताने मारने, अपशब्दों के इस्तेमाल वगैरह से वृद्धों को सताया जाता है। उच्च आयवर्ग में बोलचाल बंद करके असम्मान प्रदर्शित किया जाता है। अध्ययन में बताया गया है कि दिल्ली- एनसीआर में मौखिक उत्पीड़न अधिक है। मुंबई, हैदराबाद और चेन्नई में तो यह सौ प्रतिशत है। पटना में शारीरिक उत्पीड़न सबसे अधिक 71 प्रतिशत है। सबसे कम उत्पीड़न अहमदाबाद में पाया गया। बेटों द्वारा उत्पीड़न में पटना 71.47 और बंगलुरु 58.8 प्रतिशत के साथ आगे है। उत्पीड़न का सामना करने वाले बुजुर्गों में 70 वर्ष से ऊपर के उम्र वाले अधिक हैं। वृद्ध महिलाएं, जो अपने बेटों पर निर्भर हैं, वे अधिक पीड़ित पाई गई हैं। एकल परिवारों के इस दौर में भी देश के अधिकतर वृद्ध अपने बेटों के साथ रहते हैं। कम संख्या में ही सही, लेकिन चेन्नई ने अलग राह दिखाई है, जहां 22 प्रतिशत वृद्ध अपनी बेटी के साथ रहते हैं। प्रताड़ना की अधिकता के बावजूद 98 प्रतिशत वृद्ध अपनी संतानों के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं कराते।यह समस्या बढ़ेगी ही, क्योंकि जिंदगी लगातार लंबी होती जा रही है और साथ ही बुजुर्गो की आबादी भी। हम परंपरागत परिवार का जितना भी महिमामंडन करें, बुजुर्गियत और अशक्तता हमारे यहां भी एक गंभीर मुद्दा है। समस्या इसलिए भी है कि बदलते समाज ने अपने बीच इसकी कोई सामाजिक व्यवस्था नहीं की है और सरकारी तौर पर भी कोई विकल्प नहीं तैयार हुए हैं। सभी वृद्धों को पेंशन देने का इंतजाम अभी तक नहीं हो सका है। उनके इलाज वगैरह की कोई व्यवस्था हमारे पास नहीं है। इन समस्याओं को सुलझाने के बाद ही हम उस मोड़ पर पहुंच सकते हैं, जहां अपने बुजुर्गो को उनकी अपनी इच्छा के अनुसार सम्मानजनक और स्वस्थ जीवन जीने की जमीन दे सकें। इसी आशा के साथ अपना आलेख समाप्त करता हू।
manojjaiswalpbt |
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एक और शानदार आलेख बधाई मनोज जी
जवाब देंहटाएंGreat Post Manoj ji
जवाब देंहटाएंदेखिये मुझे ऐसा लगता है की इस सब के पीछे कहीं न कहीं जिम्मेदार हम ही हैं। और ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती ऐसा नहीं है की सभी सूरतों में बच्चे ही जिम्मेदार हैं कभी-कभी कुछ बुजुर्ग भी ऐसी ना समझी की बातें किया करते हैं। जिसके चलते उनका अपना परिवार उनसे मुह मोड़ लिया करता है। मगर इतना ज़रूर है कि बुजुर्ग होने के नाते हमे उनका सम्मान ज़रूर करना चाहिए।
जवाब देंहटाएंसमय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती ऐसा नहीं है. manoj ji
जवाब देंहटाएंशानदार पोस्ट
जवाब देंहटाएंआपका धन्यबाद
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