
यह समस्या बढ़ेगी ही, क्योंकि जिंदगी लगातार लंबी होती जा रही है और साथ ही बुजुर्गो की आबादी भी। हम परंपरागत परिवार का जितना भी महिमामंडन करें, बुजुर्गियत और अशक्तता हमारे यहां भी एक गंभीर मुद्दा है। समस्या इसलिए भी है कि बदलते समाज ने अपने बीच इसकी कोई सामाजिक व्यवस्था नहीं की है और सरकारी तौर पर भी कोई विकल्प नहीं तैयार हुए हैं। सभी वृद्धों को पेंशन देने का इंतजाम अभी तक नहीं हो सका है। उनके इलाज वगैरह की कोई व्यवस्था हमारे पास नहीं है। इन समस्याओं को सुलझाने के बाद ही हम उस मोड़ पर पहुंच सकते हैं, जहां अपने बुजुर्गो को उनकी अपनी इच्छा के अनुसार सम्मानजनक और स्वस्थ जीवन जीने की जमीन दे सकें। इसी आशा के साथ अपना आलेख समाप्त करता हू।| manojjaiswalpbt |
|---|



एक और शानदार आलेख बधाई मनोज जी
जवाब देंहटाएंGreat Post Manoj ji
जवाब देंहटाएंदेखिये मुझे ऐसा लगता है की इस सब के पीछे कहीं न कहीं जिम्मेदार हम ही हैं। और ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती ऐसा नहीं है की सभी सूरतों में बच्चे ही जिम्मेदार हैं कभी-कभी कुछ बुजुर्ग भी ऐसी ना समझी की बातें किया करते हैं। जिसके चलते उनका अपना परिवार उनसे मुह मोड़ लिया करता है। मगर इतना ज़रूर है कि बुजुर्ग होने के नाते हमे उनका सम्मान ज़रूर करना चाहिए।
जवाब देंहटाएंसमय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती ऐसा नहीं है. manoj ji
जवाब देंहटाएंशानदार पोस्ट
जवाब देंहटाएंआपका धन्यबाद
जवाब देंहटाएं