शुक्रवार

इंटरनेट अखबारों का पंजीकरण भी होगा अनिवार्य

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 मनोज जैसवाल=अब अखबारों को इंटरनेट संस्करण निकालने पर उनका पंजीकरण करना अनिवार्य होगा। साथ ही आतंकवाद कानून के तहत सजायाफ्ता और सुरक्षा कानून का उल्लंघन करने वालों के अखबार या पत्रिका निकालने पर रोक होगी। यही नहीं, विदेशी अखबारों और पत्रिकाओं की लगाम भी अब सरकार के हाथ होगी। अब अखबार या पत्रिका का टाइटल मिलने के बावजूद प्रकाशन शुरू नहीं करने वाले गैर संजीदा प्रकाशकों का पंजीकरण रद्द करने की कार्रवाई शुरू हो सकेगी। टाइटल मिलने के एक साल के भीतर ही प्रकाशक के लिए प्रकाशन शुरू करना अनिवार्य होगा। अभी यह समय सीमा दो साल है। दरअसल सरकार ने प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ बुक्स एक्ट, 1867 में संशोधन को मंजूरी देकर मीडिया क्षेत्र में बड़े बदलाव की शुरूआत कर दी है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक में बृहस्पतिवार को संशोधन को मंजूरी दी गई। अब इस कानून का नाम प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ बुक्स एंड पब्लिकेशन कानून (पीआरबीपी), 2010 कर दिया गया है। संशोधन की खास बात यह है कि अब अखबारों के इंटरनेट पोर्टल, विदेशी अखबार और पत्रिकाओं पर भी कानूनी शिकंजा कस सकेगा। अभी तक इनकी पठनीय सामग्री के खिलाफ कार्रवाई के लिए सरकार के पास कोई कानूनी शक्ति नहीं थी। विदेशी अखबार और पत्रिकाओं में विदेशी निवेश की सीमा से जुड़े दिशा निर्देशों को भी सरकार ने कानूनी जामा पहनाया है। मंत्रिमंडल की बैठक के बाद सूचना और प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने कहा कि वैश्विक बदलाव के मद्देनजर पुराने कानून में बदलाव जरूरी हो गया था। उन्होंने कहा कि प्रसार संख्या के सत्यापन के लिए वैधानिक प्रावधान किए गए हैं। यानी फर्जी तरीके से अपनी प्रसार संख्या ज्यादा दिखाने वाले प्रकाशकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकेगी। प्रकाशकों की ओर से वार्षिक विवरण दाखिल करना अनिवार्य होगा। टाइटल लेने के लिए विस्तृत विवरण देने का प्रावधान भी किया गया है।

आईएनएस ने किया संशोधन का विरोध
इंडीयन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) ने प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ बुक्स एक्ट, 1867 में प्रस्तावित संशोधन को केंद्रीय कैबिनेट द्वारा मंजूरी दिए जाने पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा है कि सरकार ने यह फैसला संबंधित पक्षों से विचार-विमर्श के बगैर ही किया है। सोसाइटी ने सरकार के इस फैसले को काफी सख्त करार दिया है। आईएनएस ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी से अनुरोध किया है कि वे न्यूजपेपर उद्योग से सलाह-मशविरा किए बगैर इस विधेयक को संसद में पेश न करें। आईएनएस के अध्यक्ष कुंदन आर व्यास ने कहा है कि पहली बार कानून के उल्लंघन पर 30 दिन और दूसरी बार उल्लंघन पर 60 दिन तक प्रकाशन बंद रखने तथा तीसरी बार ऐसा करने पर पंजीकरण रद्द करने और सजा का प्रावधान किया गया है, जो काफी कठोर फैसला है। उन्होंने कहा कि प्रकाशन बंद करने वाले प्रावधान के लिए लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है और यह संविधान की धारा 19(1)(ए) के तहत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।
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