रविवार

यह आपके लिए चिंता की बात है नेता जी!

at 18:55
 मनोज जैसवाल 


मैं  दिल्ली में अरविंद केजरीवाल द्वारा शुरू किए गए जन आंदोलन 'इंडिया अगेनस्ट करप्शन' के बैनर तले भ्रष्टाचार विरोध में आयोजित रैली में शामिल था। हल्की धूप और ताजी हवा के बीच यह एक खुशनुमा दोपहर थी। हालांकि, सबसे खूबसूरत और अविश्वसनीय बात यह थी कि छुट्टी का दिन होने के बावजूद बहुत भारी भीड़ इस रैली में जुट आई थी।


हम एक ऐसे देश में हैं जहां लोगों की भीड़ का जुटना अपने आप में बहुत मुश्किल है, बशर्ते कि वह भीड़ क्रिकेट मैच देखने के लिए न जुटी हो। यहां नेताओं तक को अपनी रैली में लोगों को जुटाने के लिए भोजन, शराब और यहां तक कि पैसे देने जैसे तामझाम का इंतजाम करना पड़ता है। लोगों को लाने के लिए उन्हें बसें लगवानी पड़ती हैं और इसके बावजूद बहुत कम ही लोग इन रैलियों में जुट पाते हैं। ऐसे में इंडिया अगेनस्ट करप्शन की इस रैली में 30 हजार लोगों का जुटना लाजवाब था!

और यह क्या गजब का समागम था! स्कूली बच्चे, कॉलेज स्टूडेंट्स। मैंने देखा कुछ तो आईआईटी दिल्ली की जैकेट्स पहने थे। डॉक्टर्स थे, वकील थे, सैन्यकर्मी, हाउसवाइव्ज़, दिल्ली के आसपास के जिलों के आम ग्रामीण, नन, नर्सें, पंडित- गुरू....सभी वहां मौजूद थे। यहां तक कि दिल्ली के ऑन ड्यूटी पुलिस कॉन्सटेबल भी बहुत ही सहयोग कर रहे थे। ऐसे ही एक कॉन्सटेबल ने मेरी ओर इशारा करके कहा- सब अच्छे काम के लिए आए हैं।

मेरे मन में वैसे कम ही शक-शुबहा था कि करप्शन के खिलाफ एकजुट हुए लोगों की ताकत का मुजाहिरा नेताओं को अनईज़ी या अनमना कर ही देगा। वह भी ऐसे समय में जब ट्यूनीशिया और ईजिप्ट में कई बदलते-बिगड़ते घटनाक्रमों का दौर चल रहा हो। हालांकि भारत में ऐसे जोरदार उफान की भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगा, क्योंकि सहज रूप से हम उनसे ज्यादा स्थिर और संयमी हैं। लेकिन मुझे महसूस होता है कि जिस तरह इस राष्ट्र में जिस तरह से चीजें आगे बढ़ रही हैं, नेताओं की जमात चीजों को ज्यादा समय तक हल्के में नहीं ले पाएगी।

जो कुछ वहां बोला जा रहा था, उस सबको ले कर जिस तरह की प्रतिक्रिया लोगों की ओर से जा रही थी वह एक तरह से न सिर्फ हैरतअंगेज थी बल्कि डरावनी भी थी। जो कुछ प्रशांत भूषण, शांति भूषण, किरण बेदी, राम जेठमलानी, मेधा पाटकर, धार्मिक गुरुओं और कई महिलाओं की टोली ने बिना किसी लाग लपेट और रोक-टोक के बोला, वह सब कुछ ऐसा था जो लंबे समय से किसी पब्लिक रैली में सुना न गया हो। खासतौर से, मेधा पाटकर उद्योगपतियों और नेताओं की धुरी को ले कर अपने आकलन में एकदम प्रभावशाली थीं।

पेशे से वकील और कार्यकर्ता बाप- बेटे प्रशांत भूषण और शांति भूषण ने बहुत तरीके से स्पष्ट किया कि किस तरह ऐंटि-करप्शन लॉ और इसे लागू करने वाली संस्थाएं 'यूज़लेस' हैं। इन दोनों को लोग और भी सुनना चाहते थे। अरविंद केजरीवाल ने बाकायदा डिमॉन्स्ट्रेट किया कि कैसे नया लोक पाल विधेयक असल में कुछ नहीं है सिवाए लोगों की आंखों में धूल झोंकने वाले एक और कानून के। मैंने इस बारे में अपनी पिछली पोस्ट में भी बताया था।

दरअसल, इससे पहले की करप्शन से लड़ने के लिए तैयार की गईं ये कथित संस्थाएं दोषियों का कुछ बिगाड़ पातीं, बाबुओं, नेताओं (और शायद उद्योगपतियों की भी) धुरी के चलते ये पूरी तरह से नाकामयाब होती रहीं। इन सब संस्थाओं को केवल सिफारिशी अधिकार दिए गए, और कुछ नहीं। तब इसमें हैरानी क्या खाक होगी कि इनके आकलन की अवहेलना की जाती रही है। लेकिन जैसा कि मैंने कहा, कल की रैली में जुटी भीड़ की मन:स्थिति अगर एक इशारा भर है तो जो लोग अब तक राष्ट्र को लूटते आ रहे हैं और हालिया सिस्टम में मजे कर रहे हैं, अब उन्हें चिंता करने की जरूरत है।

इस देश के लोग प्रशासकों और शासकों की ओर से आए दिन की जाने वाली निरर्थक बातों से आजिज आ चुके हैं। वे इस लूटपाट से अच्छी तरह से वाकिफ हैं जो गरीब आदमी के नाम पर चलाई जा रही है। स्विस बैंक अकाउंट संबंधी जानकारियों को एक ऐक्टिविस्ट के तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने सक्रिय रूप से जांचा- परखा। ठीक उसी तरह से, जैसे वह पब्लिक इंट्रेस्ट के कई अन्य मसलों में करता है। हम सब बढ़ती जा रही अराजकता के गवाह हैं। तेल माफियाओं द्वारा एक वरिष्ठ सरकारी ऑफिसर को मनमाड में जला डालने की घटना को कौन भुला सकता है। इस तरह की घटनाओं की संख्या भयानक रूप से बढ़ती जा रही है। कुछ न करना अब कोई ऑप्शन नहीं रह गया है।

जैसा कि कल की रैली में शामिल एक वक्ता ने कहा कि हमें सभी पॉलिटिकल पार्टियों को बता देना चाहिए कि करप्शन खत्म करने और इस देश में कुछ व्यवस्था लाने की ईमानदार कोशिशों की जरूरत है। अगर उन्हें हमारे वोट चाहिए तो उन्हें इस बारे में पूरी तरह से स्पष्ट सहयोग के साथ हमारे साथ होना होगा, नहीं तो हम कहीं ओर का रूख कर लेंगे। इस बात पर विश्वास करने की एक और पुख्ता वजह भी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ रैली या मार्च का आयोजन सिर्फ दिल्ली में ही नहीं बल्कि देश के 50 से अधिक शहरों और तीन अमेरिकी शहरों में भी किया गया। और यह किसी संगठन या समूह ने नहीं किया। इंडिया अगेंस्ट करप्शन के आह्वान पर इन शहरों में जागरुक लोग खुद आगे आए और अपने-अपने शहरों में भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा निकाला। यह सारा काम सिर्फ एक महीने के भीतर किया गया। पुणे, हैदराबाद, चंडीगढ़, औरंगाबाद, लखनऊ, मुंबई, चेन्नै समेत कई शहरों में हजारों लोग इसमें शामिल हुए।

यह संदेश ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना चाहिए। इंटरनेट पर सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर एक पेज है- इंडिया अगेंस्ट करप्शन http://facebook.com/indiacor . हम सभी को यहां जा कर अपना विरोध दर्ज करवाना चाहिए और रजिस्टर करना चाहिए। ताकि, जो लोग अब तक लूट करके बच निकलते हैं, उन्हें यह पता चल सके कि उनके पास अब बहुत ही कम दिन शेष बचे हैं।

और हम सब अब एक भ्रष्टाचार मुक्त भारत की ओर बढ़ रहे हैं...
manojjaiswalpbt@gmail.com

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