गुरुवार

आईपीएल विदाउट लॉयल्टी

at 14:40

 
     नामी-गिरामी खिलाडि़यों की नीलामी के साथ आईपीएल के चौथे सीजन की रणभेरी बज चुकी है। ललित मोदी की छत्रछाया के बाहर इंडियन प्रीमियर लीग का यह पहला आयोजन है, लिहाजा दसों फ्रैंचाइजी के अलावा खुद बीसीसीआई की प्रतिष्ठा भी इसमें दांव पर लगी है। कई मायनों में यह सीजन अपनी परंपरा से अलग साबित होने वाला है। शुरू से भारत की क्षेत्रीय पहचानों को आईपीएल का भावनात्मक आधार बनाने की कोशिश की गई है, लेकिन इस बार ऐसा कुछ शायद ही देखने को मिले। आइकन प्लेयर की धारणा इस बार नदारद है। इसके अवशेष के रूप में ले-देकर अकेले सचिन तेंदुलकर बचे हैं। वीरेंद्र सहवाग अपनी टीम के साथ बने हुए हैं, लेकिन उनका आइकनिक दर्जा पिछले सीजन में कप्तानी जाने से पहले ही समाप्त हो गया था। बाकी आइकनों में युवराज सिंह, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण की टीमें बदल गई हैं, जबकि खुद को खुली नीलामी पर चढ़ाने वाले सौरभ गांगुली अपने लिए कोई खरीदार तक नहीं खोज पाए हैं। आईपीएल-4 की सबसे खास बात है इसमें पुरानी हड्डियों से ज्यादा बड़ा दांव नए खिलाडि़यों पर लगाया जाना। जिस तरह अनजाने से ऑस्ट्रेलियाई ऑलराउंडर डैनियल क्रिश्चियन पर उनके देश के सभी महान खिलाडि़यों से ज्यादा ऊंची बोली लगी और बमुश्किल रणजी ट्रॉफी खेल पाने वाले उमेश यादव को जहीर खान जैसे ऑल टाइम ग्रेट से भी बड़े भाव में खरीदा गया, उससे लगता है कि टी-20 फॉर्मैट का क्रिकेट अपने लिए खेल के बाकी दोनों रूपों से बिल्कुल अलग छवि बनाने को उतावला है। यह अब सच्चे अर्थों में नौजवानों का खेल बन रहा है, जो जीत को अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा से ज्यादा वजन दें, और जिनका खून कुछ कर गुजरने के लिए पूरे साढ़े तीन घंटे उबाल मारता रहे। आईपीएल में विदेशी खिलाडि़यों से ज्यादा पैसा कुछ भारतीय खिलाडि़यों को पहले भी मिला है, लेकिन इस बार पासा बिल्कुल ही पलट गया है। सबसे ऊंची रकम हासिल करने वालों में विदेशी खिलाड़ी अब गिने-चुने ही रह गए हैं, जबकि भारतीय खिलाड़ी इस सूची में छाए हुए हैं। इसकी वजहें दो हैं। एक, भारतीय पिचों पर बाहरी खिलाडि़यों का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहता, और दो, उन्हें अपने देश के क्रिकेट कैलंडर का भी अनुसरण करना होता है, जिसके चलते उनसे पूरी वसूली नहीं हो पाती। दुनिया में जहां भी और जिन भी खेलों में क्लब सिस्टम चलता है, वहां स्थानीय पहचान ही इसके इंजन का काम करती है। लेकिन इतिहास गवाह है कि आईपीएल के पिछले तीनों संस्करण जिन कप्तानों ने जीते हैं- शेन वार्न, एडम गिलक्रिस्ट और महेंद्र सिंह धोनी- उनकी (और उनकी टीमों की भी) कोई विशेष स्थानीय पहचान नहीं थी। इस लिहाज से आईपीएल-4 अगर क्लब सिस्टम की भी कोई नई मिसाल पेश करे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

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