पर्दे पर खलनायक का किरदार निभाने वाले विलेन प्राण को दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिला है। शुक्रवार की शाम इस अवॉर्ड की घोषणा की गयी है। प्राण पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे हैं।
पर्दे पर बुरे व्यक्ति का किरदार निभाने वाले प्राण को फिल्म इंडस्ट्री के सबसे बड़े सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा जाएगा। प्राण ने लगभग चार दशकों तक अलग-अलग किरदारों से दर्शकों का मनोरंजन किया।
40 साल में कीं 350 फिल्में
चार दशक तक लगभग 350 फिल्मों करने वाले अभिनेता प्राण ने हर किस्म का किरदार निभाया है। खलनायक के अलावा वह एक सशक्क्त चरित्र अभिनेता रहे हैं। प्राण और विलेन एक दूसरे के मायने हैं।
यदि कहीं पर विलेन मतलब प्राण लिखा मिल जाए तो कोई ताज्जुब नहीं। प्राण ने एंटी हीरो की ऐसी परिभाषा गढ़ी है जिसका प्रभाव हीरो जितना ही था।
विभाजन के पहले लाहौर फिल्म गतिविधियों का बड़ा केंद्र था। प्राण साहब ने अपने कॅरियर की शुरुआत लाहौर से बननी वाली पंजाबी फिल्मों से की। फिर वह मुंबई आए। फिल्मकारों पर अच्छा प्रभाव पड़े इसलिए वह मुंबई में पहले-पहल होटल ताज में ठहरे।
उन दिनों ताज का एक दिन का किराया 55 रूपए हुआ करता था। कई दिन रहने के बाद भी प्राण को किसी भी फिल्मकार ने अपनी फिल्म के लिए साइन नहीं किया।
पैसे तेजी से कम होते देख प्राण फिर एक छोटे होटल में शिफ्ट हुए। कई दिनों तक यहां-वहां प्रयास करने के बाद भी प्राण को काम नहीं मिला। एक दिन अचानक प्राण की मुलाकात कहानीकार सहादत हसन मंटो से हुई। वह प्राण से प्रभावित हुए। मंटो उन्हें बांबे टाकीज लेकर गए।
बांबे टाकीज में प्राण का ऑडीशन लिया गया। ऑडीशन पसंद आया और प्राण को उनकी पहली हिंदी फिल्म 'जिद्दी' मिल गयी। इस फिल्म के साथ दिलचस्प बात यह है कि यह देवआनंद की भी पहली फिल्म थी।
लोगों को याद हैं प्राण के धुएं के छल्ले
लोगों ने प्राण को पहली बार 'बड़ी बहन' फिल्म में नोटिस किया था। प्राण के सिगरेट पीने की स्टाईल निर्देशक को भायी थी। वह सिगरेट के धुएं से एक तरह के छल्ले बनाते थे।
इस फिल्म में प्राण के इंट्रोडक्शन के पहले धुए यह छल्ले दिखाये जाते हैं। किरदार में एक तरह का प्रयोग और नयापन प्राण ने अपनी लगभग हर फिल्म में किया।
प्राण को एक रोमांटिक बिलेन माना जाता है। उस दौर की कई ऐसी फिल्में रही हैं जिसमें प्राण नायिका से एकतरफा प्यार करते दिखे।
प्राण का डील-डौल ऐसा था जिसे देखकर लगता था नायिका इससे प्यार करे न करे पर वह नायिका से प्यार करने की हसरत तो मन में पाल ही सकता है।
उस दौर के बाकी के खलनायकों को इस तरह की भूमिकाएं ऑफर नहीं हुयीं। यह एक तरह से हीरो के बराबर का किरदार था।
'अफसाना', 'चोरी चोरी', 'मधुमती', 'मुनीम जी', 'जब प्यार किसी से होता है', 'ब्रहमचारी' जैसी कई ऐसी फिल्में हैं जिसमें प्राण हीरोईन से प्रेम करते दिखाए गए।
यह प्राण का रुतबा ही था कि दर्शक सोचते थे कि पता नहीं फिल्म का हीरो नायिका को पा भी पाएगा या नहीं। यह उनकी अदाकारी का जादू था कि दर्शक उनसे बेइंतहा नफरत करते और अंदर-अंदर घबराते भी।
हर बार नए तरीके से खुद को पेश करते रहे हैं प्राण
प्राण ने अपने किरदारों में अपने दोहराव नहीं आने दिया। चूंकि भूमिकाएं तो उन्हें नकारात्मक ही मिलतीं पर वह अपनी अदा से वह उसमें नयापन लाने का प्रयास करते।
यह नयापन कभी कोई तकिया कलाम होता तो कभी कोई स्टाईल। प्राण की हर फिल्म उनकी यूनिक स्टाईल से पहचानी गयी है।
नकारात्मक भूमिका के अलावा प्राण एक सशक्कत चरित्र भूमिका भी कर सकते हैं इसे दर्शकों ने मनोज कुमार के बैनर की फिल्म 'शहीद' में देखा।
'शहीद' के बाद मनोज कुमार की ही फिल्म 'उपकार' में प्राण मंगल चाचा की यादगार भूमिका में दिखे। इसके बाद प्राण के दूसरे तरह के रोल के दरवाजे खुल गए।
'जंजीर' फिल्म का शेर खान का किरदार हो या बॉबी फिल्म में ऋषि कपूर के पिता का रोल, प्राण हर तरह के किरदार में प्रभावी नजर आए।
इसके बाद प्राण, 'डॉन', 'अमर अकबर एंथोनी', 'दोस्ताना', 'कर्ज', 'कालिया', 'नसीब' और 'अंधा कानून' जैसी बड़ी फिल्मों में अलग-अलग किरदारों में दिखें। 1997 में रिलीज हुई फिल्म मृत्युदाता प्राण की आखिरी फिल्म थी।
पर्दे पर बुरे व्यक्ति का किरदार निभाने वाले प्राण को फिल्म इंडस्ट्री के सबसे बड़े सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा जाएगा। प्राण ने लगभग चार दशकों तक अलग-अलग किरदारों से दर्शकों का मनोरंजन किया।
40 साल में कीं 350 फिल्में
चार दशक तक लगभग 350 फिल्मों करने वाले अभिनेता प्राण ने हर किस्म का किरदार निभाया है। खलनायक के अलावा वह एक सशक्क्त चरित्र अभिनेता रहे हैं। प्राण और विलेन एक दूसरे के मायने हैं।
यदि कहीं पर विलेन मतलब प्राण लिखा मिल जाए तो कोई ताज्जुब नहीं। प्राण ने एंटी हीरो की ऐसी परिभाषा गढ़ी है जिसका प्रभाव हीरो जितना ही था।
विभाजन के पहले लाहौर फिल्म गतिविधियों का बड़ा केंद्र था। प्राण साहब ने अपने कॅरियर की शुरुआत लाहौर से बननी वाली पंजाबी फिल्मों से की। फिर वह मुंबई आए। फिल्मकारों पर अच्छा प्रभाव पड़े इसलिए वह मुंबई में पहले-पहल होटल ताज में ठहरे।
उन दिनों ताज का एक दिन का किराया 55 रूपए हुआ करता था। कई दिन रहने के बाद भी प्राण को किसी भी फिल्मकार ने अपनी फिल्म के लिए साइन नहीं किया।
पैसे तेजी से कम होते देख प्राण फिर एक छोटे होटल में शिफ्ट हुए। कई दिनों तक यहां-वहां प्रयास करने के बाद भी प्राण को काम नहीं मिला। एक दिन अचानक प्राण की मुलाकात कहानीकार सहादत हसन मंटो से हुई। वह प्राण से प्रभावित हुए। मंटो उन्हें बांबे टाकीज लेकर गए।
बांबे टाकीज में प्राण का ऑडीशन लिया गया। ऑडीशन पसंद आया और प्राण को उनकी पहली हिंदी फिल्म 'जिद्दी' मिल गयी। इस फिल्म के साथ दिलचस्प बात यह है कि यह देवआनंद की भी पहली फिल्म थी।
लोगों को याद हैं प्राण के धुएं के छल्ले
लोगों ने प्राण को पहली बार 'बड़ी बहन' फिल्म में नोटिस किया था। प्राण के सिगरेट पीने की स्टाईल निर्देशक को भायी थी। वह सिगरेट के धुएं से एक तरह के छल्ले बनाते थे।
इस फिल्म में प्राण के इंट्रोडक्शन के पहले धुए यह छल्ले दिखाये जाते हैं। किरदार में एक तरह का प्रयोग और नयापन प्राण ने अपनी लगभग हर फिल्म में किया।
प्राण को एक रोमांटिक बिलेन माना जाता है। उस दौर की कई ऐसी फिल्में रही हैं जिसमें प्राण नायिका से एकतरफा प्यार करते दिखे।
प्राण का डील-डौल ऐसा था जिसे देखकर लगता था नायिका इससे प्यार करे न करे पर वह नायिका से प्यार करने की हसरत तो मन में पाल ही सकता है।
उस दौर के बाकी के खलनायकों को इस तरह की भूमिकाएं ऑफर नहीं हुयीं। यह एक तरह से हीरो के बराबर का किरदार था।
'अफसाना', 'चोरी चोरी', 'मधुमती', 'मुनीम जी', 'जब प्यार किसी से होता है', 'ब्रहमचारी' जैसी कई ऐसी फिल्में हैं जिसमें प्राण हीरोईन से प्रेम करते दिखाए गए।
यह प्राण का रुतबा ही था कि दर्शक सोचते थे कि पता नहीं फिल्म का हीरो नायिका को पा भी पाएगा या नहीं। यह उनकी अदाकारी का जादू था कि दर्शक उनसे बेइंतहा नफरत करते और अंदर-अंदर घबराते भी।
हर बार नए तरीके से खुद को पेश करते रहे हैं प्राण
प्राण ने अपने किरदारों में अपने दोहराव नहीं आने दिया। चूंकि भूमिकाएं तो उन्हें नकारात्मक ही मिलतीं पर वह अपनी अदा से वह उसमें नयापन लाने का प्रयास करते।
यह नयापन कभी कोई तकिया कलाम होता तो कभी कोई स्टाईल। प्राण की हर फिल्म उनकी यूनिक स्टाईल से पहचानी गयी है।
नकारात्मक भूमिका के अलावा प्राण एक सशक्कत चरित्र भूमिका भी कर सकते हैं इसे दर्शकों ने मनोज कुमार के बैनर की फिल्म 'शहीद' में देखा।
'शहीद' के बाद मनोज कुमार की ही फिल्म 'उपकार' में प्राण मंगल चाचा की यादगार भूमिका में दिखे। इसके बाद प्राण के दूसरे तरह के रोल के दरवाजे खुल गए।
'जंजीर' फिल्म का शेर खान का किरदार हो या बॉबी फिल्म में ऋषि कपूर के पिता का रोल, प्राण हर तरह के किरदार में प्रभावी नजर आए।
इसके बाद प्राण, 'डॉन', 'अमर अकबर एंथोनी', 'दोस्ताना', 'कर्ज', 'कालिया', 'नसीब' और 'अंधा कानून' जैसी बड़ी फिल्मों में अलग-अलग किरदारों में दिखें। 1997 में रिलीज हुई फिल्म मृत्युदाता प्राण की आखिरी फिल्म थी।
Manoj jaiswal |
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जबरदस्त अभिनेता है प्राण जी.
जवाब देंहटाएंप्राण एक कुशल अभिनेता हैं,इन्हें यह पुरस्कार और पहले मिलना चाहिए था.इनके बारे में विस्तृत जानकारी देकर बहुत ही सार्थक काम किये हैं,आभार.
जवाब देंहटाएंशानदार लेख प्राण जी पर शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंआप सही कह रहे हैं प्राण सा. को ये पुरस्कार उनकी अस्वस्थता के मुताबिक ही मिलने की व्यवस्था होनी चाहिये ।
जवाब देंहटाएंसच में ही बॉलीवुड के प्रभावशाली किरदारों में अग्रिम पंक्ति के अभिनेता और एक बेहतरीन इंसान । उनका सम्मान , देश के लिए खुशी और गर्व की बात है ।
जवाब देंहटाएंसभी मेहरबान साथिओं का पोस्ट पर कमेन्ट के लिए ह्रदय से आभार।
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