रविवार

लाय डिटेक्टर और नार्को एनालिसिस कितनी जायज और नैतिक?

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View Image in New Window झूठ पकड़ने की मशीन यानी लाय डिटेक्टर और नार्को एनालिसिस पिछले वर्षों में काफी चर्चित रहे हैं। ये दोनों शत-प्रतिशत भरोसेमंद नहीं हैं और नार्को एनालिसिस तो कई वजहों से विवादास्पद भी है। किसी इंसान को उसकी इच्छा के खिलाफ कुछ नशीली दवाएं देकर उससे सच उगलवाने की कोशिश कितनी जायज और नैतिक है, इस पर काफी बहस हुई है। अब इस्टोनिया के दो वैज्ञानिकों ने एक दिलचस्प प्रयोग के नतीजे प्रकाशित किए हैं। उनके मुताबिक, दिमाग के अगले हिस्से के कुछ विशेष क्षेत्रों में चुंबकीय उद्दीपन से किसी इंसान की सच या झूठ बोलने की प्रवृत्ति को नियंत्रित किया जा सकता है। अगर दाहिनी तरफ चुंबकीय क्षेत्र का प्रयोग किया जाए, तो इंसान की झूठ बोलने की प्रवृत्ति कम हो जाती है, बाईं ओर चुंबक लगाएं, तो उसके झूठ बोलने की आशंका बढ़ जाती है। प्रयोगकर्ता प्रोफेसर टैलिस बाखमैन के अनुसार, इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अगर दिमाग के कुछ हिस्सों को नष्ट कर दिया जाए, तो वह व्यक्ति झूठ नहीं बोल पाएगा। कुछ बरस पहले बनी हॉलीवुड की फिल्म ‘लायर लायर’ में वकील बने जिम कैरी का बेटा पिता की झूठ बोलने की आदत से तंग आकर ईश्वर से प्रार्थना करता है- कम से कम एक दिन के लिए उसके पिता झूठ न बोलें। भगवान उसकी इच्छा पूरी कर देते हैं और एक दिन सिर्फ सच बोलने की वजह से उस वकील के लिए क्या-क्या मुसीबतें होती हैं, इसकी दिलचस्प दास्तान फिल्म में थी। जाहिर है कि झूठ बोलने की क्षमता ही खत्म हो जाए, तो कई लागों के लिए तो रोजी-रोटी छिनने की समस्या पैदा हो जाएगी। वैसे भी झूठ बोले बिना शायद ही किसी का दुनिया में काम चलता हो। जो व्यक्ति यह कहता है कि वह कभी झूठ नहीं बोलता, ज्यादा आशंका यही है कि वह झूठ बोल
रहा है।


बाखमैन के हिसाब से राहत की बात है कि यह सिर्फ सैद्धांतिक बात है, सचमुच ऐसा होने की संभावना फिलहाल नहीं है। चुंबकीय क्षेत्र के प्रयोग से झूठ बोलने की प्रवृत्ति खत्म नहीं हुई, झूठ बोलने की आशंका कम हो गई। ऐसा भी नहीं था कि प्रयोग में भाग लेने वालों में सत्य के प्रति आकर्षण बढ़ गया और झूठ बोलने की इच्छा कम हो गई। वैज्ञानिकों ने मोटे तौर पर दिमाग के अलग-अलग हिस्सों के अलग-अलग काम ढूंढ़ तो निकाले हैं, लेकिन इन हिस्सों का श्रम विभाजन बहुत साफ-साफ नहीं है। दिमाग के तमाम कामों में दिमाग के कई हिस्से मिलकर काम करते हैं, इसलिए यह कहना बहुत मुश्किल है कि यही एक हिस्सा झूठ बोलने के लिए जिम्मेदार है, या यह हिस्सा सिर्फ झूठ के लिए है, इसका कोई दूसरा काम नहीं है। यह भी देखा गया है कि अगर दिमाग का कोई हिस्सा बेकार हो जाता है, तो उसका दूसरा कोई हिस्सा उस काम को करने की क्षमता विकसित कर लेता है। हमारी भावनाएं, विचार वगैरा बहुत मिले-जुले होते हैं। हम झूठ और कल्पना को अलग-अलग कैसे कर सकते हैं? संभव है कि झूठ बोलने की क्षमता खत्म होने पर कल्पनाशक्ति भी खत्म हो जाए, जिसके सहारे हम वे बातें सोचते हैं, जो अब तक यथार्थ में नहीं हैं। अगर हम अपने स्वार्थ के लिए झूठ बोलते हैं, तो उसका दूसरा अर्थ होता है और अगर किसी का दिल न दुखे इसके लिए या किसी की भलाई के लिए झूठ बोलते हैं, तो उसका कुछ और अर्थ होता है। मानवीय स्वभाव में काले-सफेद की तरह अच्छे-बुरे का साफ-साफ फर्क नहीं होता, उसमें इनके  बीच के अनेक तरह के शेड्स होते हैं। बाखमैन आगाह करते हैं कि इस विषय पर आगे का शोध बहुत सावधानी से करना होगा, ताकि इसका दुरुपयोग न हो सके।(एक शोध पर आधारित )
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