मनोज जैसवाल =यह कटु सत्य है कि हिन्दुऔं की कुछ मान्यताएँ भ्रांतिपूर्ण एवं भ्रष्टाचार की जनक हैं । यह लेख संस्थाओं के सार्वजनिक लेन-देन के संदर्भ में है ।
रिश्वत अथवा घूस-खोरी भी भ्रष्टाचार के अंतर्गत ही आते हैं । अधिकांश हिन्दू रिश्वत अथवा घूस-खोरी के मुद्दे पर असमंजस की स्थिति में हैं । सामान्य तौर पूछा जाये तो “रिश्वत मांगने” को अधिकांश हिन्दू अनैतिक ही कहेंगे । लेकिन अगर “रिश्वत अपने आप प्राप्त हो” ऐसी स्थिति में अधिकांश हिन्दुऔं में मतभेद मिलेगा । कारण कि अपने आप आती हुई लक्ष्मी को कोई ठुकराना नहीं चाहता । क्योंकि गलती से “ठुकराना” को ही “अपमान’” मान लिया गया है ।
हिन्दुऔं को समझना होगा कि रिश्वत निश्चित तौर पर अपराध है । यह कथन चाणक्य नीति में, महाभारत में भीष्म-युधिष्टर संवाद में, मनु-स्मृति सहित अनेक ग्रथों में आता है ।
अतएव रिश्वत चाहे नैतिक कार्य के एवज ली जाये या अनैतिक कार्य के एवज ली जाये, रिश्वत अपराध ही है । साथ ही यह भी मानना होगा कि रिश्वत को ठुकराने से लक्ष्मी का कोई अपमान नहीं होता । रिश्वत एक अनैतिक साधन है धन कमाने का, जिसको किसी भी प्रकार से मान्यता नहीं दी जा सकती
यह सभी हिन्दुऔं का कर्तव्य है कि वे अपने जीवन से रिश्वत का बेहिचक त्याग करें ।
यह सभी का कर्तव्य है कि वे अपने जीवन से रिश्वत का बेहिचक त्याग करें पर घूस-खोरी भी भ्रष्टाचार लेखन के लिय साधुबाद
जवाब देंहटाएंकुमारी तरुण
सुन्दर पोस्ट मनोज जी
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