मंगलवार

पदक नहीं बताते महिलाओं का हाल

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  प्रकाशित किया मनोज जैसवाल 
   कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय महिला खिलाड़ियों ने अपनी सफलता का जो इतिहास रचा, उसे देख कर सब दंग हैं। इन महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाने से पहले हाल में जारी वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2010 पर हमें नजर डालनी चाहिए, जो भारत में महिलाओं की स्थिति पर हमें आईना दिखाती है।

यह रपट हमें याद दिलाती है कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर मौके देने के मामले में भारत अब भी पिछड़े हुए 134 मुल्कों की सूची में शामिल है। इस रपट में भारत को 112वां स्थान मिला है यानी विश्व की तेजी से उभरती इस अर्थव्यवस्था के सामने अपनी आधी-आबादी को पुरुषों के बराबर मौके देना एक बहुत बड़ी चुनौती है। राजनीतिक ताकत, शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक भागीदारी- इन चार आधारों पर महिलाओं की स्थिति का आकलन रिपोर्ट में किया गया है। राजनीतिक ताकत वाली श्रेणी में भारत 23वें पायदान पर है, जो कुछ राहत देता है। इसकी वजह पंचायती राज, नगर निगम चुनाव में महिलाओं को मिला 50 प्रतिशत आरक्षण, देश के शीर्ष राजनीतिक पदों पर महिलाओं का चुना जाना आदि कारक हैं।

रिपोर्ट के अनुसार भारत की महिलाएं स्वास्थ्य के मामले में 132वें, आर्थिक भागीदारी में 128वें और शिक्षा में 120वें पायदान पर हैं। आज भी भारत में बच्चे को जन्म देते वक्त हर एक लाख मांओं में से 450 की मौत हो जाती है, जबकि श्रीलंका में यह आंकड़ा 58 है, चीन में 45 है तो पाकिस्तान में 320 है। बेशक, केंद्र सरकार ने संस्थागत प्रसव के लिए प्रोत्साहित करने, मातृ मृत्यृ दर में कमी लाने व मातृ स्वास्थ्य में सुधार लाने के मकसद से देश भर में जननी सुरक्षा योजना चलाई हुई है, लेकिन यह योजना कितनी कारगर है, इसकी पड़ताल करना भी जरूरी है। कई राज्यों में 19 साल से कम उम्र की गर्भवती लड़कियां व दो बच्चों की मांएं इस योजना से बाहर हैं।

मध्यप्रदेश में असिस्टेंट नर्सिग मैटर्नेस (एएनएम) व आशा कार्यकर्ता, जिनका काम सरकारी स्वास्थ्य कार्यक्रमों को गरीब जनता तक पहुंचाना है, वे ही अक्सर गर्भवती दलित महिलाओं के साथ भेदभाव करती हैं। दलित महिलाएं जननी सुरक्षा योजना के तहत मिलने वाली रकम का एक बहुत बड़ा हिस्सा एएनएम व डॉक्टरों को रिश्वत देने में खर्च कर देती हैं। सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भी जननी सुरक्षा योजना के वांछित नतीजे नजर नहीं आते। दरअसल, इस राज्य में जिला स्तर के बाद ऐसी मौतों की जानकारी नहीं मिलना भी एक समस्या है।

यहां न तो कोई शिकायत तंत्र है, न ही कोई बेहतर आपातकालीन व्यवस्था। स्थितियां इस कदर बदतर हैं कि संस्थागत प्रसव होने के बाद फॉलोअप करने की कोशिश तक नहीं की जाती, ताकि पता चल सके कि वह मां प्रसव के बाद बिना किसी संक्रमण या चोट के जीवित भी है या नहीं।

जहां तक शिक्षा का सवाल है, एक तथ्य यह है कि शिक्षा का स्तर ज्यों-ज्यों बढ़ता जाता है, लड़कियों की संख्या में उसी क्रम में कमी आती जाती है। सरकार को यह फासला पाटने के लिए अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना व समाज को अपने रुझान में बदलाव लाने की रफ्तार को तेज करना होगा। आर्थिक क्षेत्र में भागीदारी के मामले में भारत की महिलाएं 128वें पायदान पर हैं।

चीन और अमेरिका हमसे काफी बेहतर स्थिति में हैं। अपने देश में बीएसई की चोटी की 100 कंपनियों के बोर्ड में महिलाओं की संख्या महज 5.3 प्रतिशत है। आधी से भी कम कंपनियों ने (केवल 46) अपने बोर्ड में महिलाओं की नियुक्ति की है जबकि अमेरिका में ऐसे महत्वपूर्ण पदों पर 14.5 प्रतिशत महिलाएं हैं। ब्रिटेन में यह दर करीब 12 प्रतिशत है।

दरअसल, दुनिया में तेज गति से उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश भारत में इस मुद्दे पर खुल कर बहस होनी चाहिए। यह ध्यान में रखना होगा कि शिक्षित महिलाएं इस देश की गतिशील अर्थव्यवस्था के मुख्य इंजनों में एक हैं। व्हाइट कॉलर्ड श्रमिकों की यह नई पौध पेशेवर रुझान के साथ शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेती है और उसी रुझान व तेवरों के साथ जॉब मार्केट में भी उतरती है।

कॅरियर को अधिकार के रूप में लेने वाली महिलाओं की यह पहली पीढ़ी क्या चाहती है, यह जानने-समझने के लिए हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू का हाल में प्रकाशित अंक मदद करता है। इसमें छपे एक अध्ययन के मुताबिक भारत में 85 प्रतिशत महिलाएं महत्वाकांक्षी हैं जबकि चीन में 65 प्रतिशत। देश की 76 प्रतिशत महिलाएं खुद को नौकरी में शीर्ष पर देखने की आकांक्षा रखती हैं। हैरत होती है उस फासले को देखकर, जो ऐसी आकांक्षी महिलाओं व जमीनी हकीकत के दरम्यान पसरा हुआ है।  

अब जबकि उच्च शिक्षित महिलाएं देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए अपने कॅरियर, बच्चों व सांस्कृतिक दबावों के बीच संतुलन बनाने के लिए संघर्ष कर रही हैं, तो ऐसे में नियोक्ताओं को प्रतिभाशाली 
महिलाओं को ऊंचे पदों पर पहुंचने में मदद करनी चाहिए।ईमेल-manojjaiswalpbt@gmail.com

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