मंगलवार

अब छोटे व्यापारियों को भी बचाइए ?

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यकीनन इस समय देश की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा की भारी कमी को दूर करने के परिप्रेक्ष्य में एक अगस्त, 2013 को मल्टी ब्रांड रिटेल में शर्तों को उदार बनाया गया है। वस्तुत: देश की अर्थव्यवस्था मुश्किल दौर में है। 2012-13 में चालू खाते का घाटा जीडीपी के 4.8 फीसदी पर पहुंच गया है। बीते वित्त वर्ष में निर्यात 300 अरब डॉलर का हुआ, जबकि आयात 490 अरब डॉलर का। इस क्रम में विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 285 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है। इन सबके साथ-साथ डॉलर की तुलना में रुपए के मूल्य में भारी गिरावट और दो अगस्त को भारतीय मुद्रा की कीमत 61.10 रुपए प्रति डॉलर के रिकॉर्ड न्यूनतम स्तर पर आने के कारण सरकार ने तेजी से विभिन्न कदम उठाकर देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) बढ़ाने की डगर पर और आगे बढ़ाने का संकेत दिया है। निस्संदेह देश में विदेशी निवेश की भारी जरूरत बनी हुई है, ऐसे में मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई से जुड़ी शर्तों में ढील देने के लिए विदेशी रिटेलर्स कंपनियों की तरफ से सरकार पर बढ़ते हुए दबाव के बाद सरकार ने मल्टी ब्रांड रिटेल से जुड़ी मुख्य तीन शर्तों में रियायत दी है। अब मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई वाले रिटेल स्टोर खोलने के लिए 10 लाख की आबादी की पाबंदी नहीं रह गई है, पहले की शर्तों के अनुसार मल्टी ब्रांड में एफडीआई वाले रिटेल स्टोर 10 लाख या इससे अधिक जनसंख्या वाले शहर में ही खोले जा सकते थे।
चूंकि रिटेल स्टोर खोलने की इजाजत देना राज्य सरकार से जुड़ी शर्त है, अतएव राज्य सरकार स्टोर शुरू करने का निर्णय लेगी। अनिवार्य निवेश संबंधी शर्त में रियायत यह है कि अब मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश करने वाली कंपनियों को कम से कम 10 करोड़ डॉलर का निवेश करना होगा, लेकिन उस कुल निवेश की आधी राशि बुनियादी ढांचे पर सिर्फ एक बार निवेश करनी होगी बाद में किए गए निवेश में से कितना बुनियादी ढांचे पर खर्च होगा यह तय करने का अधिकार रिटेलर को दिया गया है। इसी तरह सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योगों (एसएमई) से 30 फीसदी की ख़रीददारी में मामूली बदलाव किया गया है। मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई वाले स्टोर को अपने पहले निवेश के दौरान ही एसएमई से 30 फीसदी की ख़रीददारी अनिवार्य होगी, लेकिन अब कंपनियां 20 लाख डॉलर वाली कंपनियों से भी सामान की खरीदारी कर पाएंगी, पहले यह सीमा 10 लाख डॉलर थी. लेकिन अब खरीद में विदेशी रिटेल कंपनियां खरीद संबंधी अपनी शत्रे एसएमई पर थोप सकती हैं। नई रियायतों के बाद ख़रीद प्रक्रिया निरंतर जारी नहीं रहने पर एसएमई को लाभ नहीं होगा. फिर भी मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई की शर्तों में बदलाव से कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा। यद्यपि केंद्र सरकार ने देश में मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई को आसान बनाने के लिए तीन प्रमुख शर्तों में राहत दी है लेकिन अब देश के छोटे व्यापारियों की चिंताओं और कारोबार सुरक्षा पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है। वस्तुत: जैसे-जैसे देश के रिटेल सेक्टर में वैश्विक दिग्गजों के कदम बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे छोटे व्यापारियों की चिंताएं भी बढ़ रही हैं. देश में मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई कितनी तेजी से आएगा, इसका अनुमान एसोचैम और यस बैंक द्वारा अक्टूबर 2012 में तैयार की गई संयुक्त रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक रिटेल में एफडीआई के मानकों को शिथिल बनाए जाने के बाद मल्टी ब्रांड सेगमेंट में वर्ष 2016-17 तक 40 हजार करोड़ रुपए का निवेश संभावित है। निस्संदेह भारत में मल्टी ब्रांड रिटेल के नए परिदृश्य के बाद देश के उपभोक्ताओं और संपूर्ण अर्थव्यवस्था को लाभान्वित करने के लिए छोटे व्यापारियों के हितों के संबंध में नियामक उपाय किए जाने जरूरी हैं, ताकि विदेशी रिटेल दिग्गजों पर आवश्यक नियंत्रण रखा जा सके। यह नियंत्रण करना होगा कि जिन शर्तों के आधार पर एफडीआई की स्वीकृति दी गई है, उन पर पूरा ध्यान दिया जाए। केंद्र सरकार के द्वारा नियामक (रेग्यूलेटरी) उपाय करके छोटे कारोबार के हित सुनिश्चित करने होंगे। यह जरूरी है कि दुनिया के कई देशों में एफडीआई की मंजूरी के बाद वहां की सरकारों द्वारा छोटे व्यापारियों के हित और उपभोक्ता शोषण से संबंधित जो कारगर कदम उठाए गए उन्हें भी ध्यान में रखा जाए. हम खासतौर से चीन में मल्टी ब्रांड रिटेल में उठाए गए कारोबार सुरक्षा उपायों को ध्यान में रख सकते हैं. चीन में सरकार ने विदेशी रिटेलरों से एफडीआई से संबंधित शर्तों का कठोरता से पालन कराया। वस्तुत: चीन की सरकार के एफडीआई नियमन और छोटे व्यापारियों की सुरक्षा व्यवस्थाओं के कारण चीन के संगठित खुदरा कारोबार में विदेशी रिटेलर अपना कब्ज़ा नहीं कर पाए हैं। चीन में ही नहीं, दुनिया के कई विकासशील देशों में भी रिटेल क्षेत्र में एफडीआई की अनुमति है लेकिन शर्तों के तहत गुणवत्ता, अनुबंध प्रक्रिया और कीमत से जुड़े मानक इतने कड़े हैं कि कई दिग्गज वैश्विक कंपनियां भी इन बाजारों में देशी रिटेल कारोबार को चोट नहीं पहुंचा पाई हैं। विदेशी निवेश के साथ आने वाली वैश्विक कंपनियों और भारत के परंपरागत खुदरा व्यापारियों को अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा तथा बाजार बुराइयों से बचाने के लिए बाजार संबंधी नए नियमन और नियंत्रण जरूरी होंगे. कारोबार की गुणवत्ता नियंत्रण संस्थाओं की मज़बूती और नए कलेवर से हमें भारत के ढीले-ढाले और निष्प्रभावी गुणवत्ता मानकों को कारगर और सक्षम बनाना होगा. यह भी उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने देश में छोटे व्यापारियों के सामने आ सकने वाली परेशानियों पर विचार के लिए उपभोक्ता मामलों के मंत्री की अध्यक्षता में समिति गठित की है। इस समिति को छोटे कारोबार की नई चुनौतियों और एफडीआई के नकारात्मक असर को रोकने के लिए कारगर समाधान खोजने होंगे. जहां मल्टी ब्रांड रिटेल में देश के छोटे व्यापारियों के हितों को सुरक्षित रखने के लिए सरकार को कारोबार सुरक्षा उपाय करने होंगे, वहीं छोटे व्यापारियों को भी विदेशी दिग्गजों से मुकाबले के लिए आत्मविश्वास और विक्रय कला की नई रणनीति के साथ मज़बूती से खड़ा होना पड़ेगा. वस्तुत: रिटेल में एफडीआई के आने से हमारे छोटे व्यापारियों को अधिक डरने की जरूरत नहीं है. इस समय हमारे देश की कंपनियां, किसान और व्यवसायी भी हर तरह से वैश्विक प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करते हुए दिखाई दे रहे हैं। आज छोटे कारोबारी रिटेल में संगठित सेक्टर के आने के बाद भी अपना कारोबार अच्छी तरह कर रहे हैं। ऐसे में देश के संगठित व्यापारियों के साथ-साथ छोटे कारोबारी भी बाहर से आने वाली कंपनियों को बराबर की टक्कर और जवाब देने की क्षमता रखते हैं। वस्तुत: देशी रिटेल इतना कमजोर नहीं है कि वालमार्ट और काफरू जैसी कंपनियों का यहां कब्ज़ा हो जाएगा। देसी रिटेल भी बदल रहा है और उम्मीद है कि वह मल्टीनेशनल चेन को कड़ी टक्कर देगा। यह भी जरूरी होगा कि देश के छोटे कारोबारी अपनी विक्रय कला तथा अपनी ईमानदारी पूर्ण मूल्य निर्धारण की नीति से ग्राहकों का विश्वास बनाए रखें। उम्मीद करनी चाहिए कि सरकार मल्टी ब्रांड रिटेल में निवेश करने वाली विदेशी कंपनियों के लिए उदार शर्तों के बाद अब छोटे व्यापारियों के हितों के लिए भी सुरक्षा उपायों को अपनाने की डगर पर आगे बढ़ेगी, ऐसा होने पर ही दुनिया के कई देशों की तरह मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई की नई शर्तों से देश में विदेशी मुद्रा का प्रवाह बढ़ेगा, वहीं उपभोक्ताओं, किसानों और संपूर्ण अर्थव्यवस्था को लाभ मिलेगा।

मनोज जैसवाल

14 टिप्‍पणियां

  1. यह किसी को नहीं बचायेंगे सब लुट कर खा जायेंगें

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    1. अर्चना अग्रवाल जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए ह्रदय से आभार।

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  2. बढिया आर्टिकल

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    1. Prem Prkash जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए ह्रदय से आभार।

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    1. mohit जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए ह्रदय से आभार।

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  4. Sonu Pandit जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए ह्रदय से आभार।

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  5. आपका सादर आभार।

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  6. आपकी इस प्रस्तुति को शुभारंभ : हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 1 अगस्त से 5 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।

    कृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा

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  7. बहुत सुन्दर आलेख . आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (12.08.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .

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  8. बहुत ही समसामयिक आलेख,लूटने को तत्पर सब हैं यहाँ।

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    1. सही कहा आपने राजेंद्र जी,पोस्ट पर टिप्पणी के लिए ह्रदय से आभार।

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