ज़रा इधर भी एक नजर
भेजने वाले की मंशा यह बताने की थी कि देखो, कैसी कैसी खबरें छाप देते हैं अखबार वाले. लेकिन जब इस खबर को आप पढ़ते हैं तो पढ़ने-सोचने के कुछ देर बाद कई बड़े सवाल सामने आ जाते हैं. पहले तो अखबार में प्रकाशित खबर पढ़िए और फोटो देखिए, फिर आगे बढ़ते हैं...
खबर पढ़ने के बाद अब कुछ देर तक सोचिए.
फिर मेरे दिमाग में आए कुछ सवालों की लिस्ट को बांचिए-जांचिए, जो नीचे है, और तब अपने मन की बात बिलकुल नीचे कमेंट बाक्स में लिखकर बताइए...
- पढ़ने के बाद तो तुरंत यह लगता है कि इस नीच इंसान को बिना देरी किए फांसी पर लटका कर काम तमाम कर देना चाहिए.
- थोड़ा ठहरकर सोचने पर लगता है कि क्या ये इंसान समझदार नहीं है? अतिशय सेक्सुवल भावावेश में बजाय किसी लड़का-लड़की-महिला पर धावा बोलकर उसके साथ दुष्कर्म करने के, या किसी गरीब बच्चे-बच्ची महिला को फुसलाकर उसके साथ जबरदस्ती करने के, उसने दूसरा, कम अमानवीय, रास्ता अपनाया, जो उसे तुरंत सूझा और सामने दिखा होगा. उसने अमानवीय बनने की जगह, अजानवरीय बनना पसंद किया.
- मुर्गे, बकरे आदि को मारकर खा जाने वाले मनुष्य क्या इसी दोषी युवक की तरह दोषी नहीं हैं? उसने तो कुतिया से कुकर्म किया, हम लोग तो मुर्गे, कुत्ते, बकरे, कबूतर, सांप, बंदर, चूहे, झींगा, हिरन, भैंस... जो पका मिल जाए, खा लेंगे. जानवर का जान लेना जुर्म नहीं और जानवर से दुष्कर्म की इतनी बड़ी सजा की उस आदमी की तस्वीर तक छाप दी गई? उसे खलनायक बना दिया गया? पुलिस वाले टोपी लगाकर सक्रिय हो गए?? एलीट तबके के लोग कुतिया के हक के लिए जिंदाबाद-मुर्दाबाद के अंदाज में आगे आ गए?
- हम दिल्ली-मुंबई-लखनऊ-पटना सरीखे नगरों-महानगरों में रहने वाले भरे पेट-हरे नोट वाले बौद्धिक लोग क्या किसी चीज को सपाट तरीके से देखने के आदी नहीं हो गए हैं, जबकि हमारे आप पर दायित्व है कि ऐसी स्थितियों के अन्य पहलुओं पर भी बात करें, दूसरे पक्ष को भी सुनें, दूसरे पक्ष के हिसाब से भी सवाल पैदा करें. लेकिन सेक्स शब्द का उच्चारण करने से परहेज करने वाले हम हिंदी पट्टी के बौद्धिक हिप्पोक्रेट, सेक्स शब्द तक कहीं लिखा मिल जाता है तो सब छोड़कर उसे पढ़ने जानने के लिए टूट पड़ते हैं. इसलिए अखबार ने इस खबर को सपाट तरीके से ऐसे परोस दिया कि जो देखे वह पूरा पढ़े और आरोपी को फांसी देने वाली मानसिकता में आ जाए.
- जिस देश के ज्यादातर शहरों से हर साल गरीब बच्चियां हजारों की संख्या में अचानक गायब हो जाया करती हों, फिर उन्हें कोलकाता-मुंबई-दिल्ली सरीखे वेश्यावृत्ति के गढ़ों में बेच दिया जाता हो, उम्र से जल्दी सेक्स के लायक बनाने के लिए तरह-तरह के अप्राकृतिक उपाय किए जाते हों, हारमोन के इंजेक्शन लगाए जाते हों, उस देश की सरकार व बुद्धिजीवी इसे कोई मुद्दा बना पाने का, मुद्दा मान पाने का माद्दा नहीं रखते, लेकिन एक कुतिया से किसी नशेड़ी ने यौनाचार किया हो तो वह इतना बड़ा मुद्दा बन जाता है किसी अखबार के लिए.
मैं आरोपी का बचाव नहीं कर रहा. मैं उसे निर्दोष भी नहीं मान रहा. लेकिन खबर पढ़ने के बाद कुछ सवाल जो दिमाग में आ रहे थे, उसे रखने की कोशिश की है. संभव है, गलत सोच रहा हूं. हो सकता है एक पुरुष हूं, आक्रामक हूं, हर चीज में, तो उपरोक्त फोटो वाले पुरुष के अंदर के जानवर को महसूस कर पा रहा होऊं. हो सकता है सही वही हो जो खबर पढ़कर सीधे व सपाट तरीके से समझ में आ रहा हो कि इसे फांसी दे दी जाए क्योंकि इसने दुनिया का महा पापा किया है. लेकिन यह हक तो बनता है न कि किसी चीज के दूसरे पहलू के बारे में बात की जा सके, किसी चीज में विपक्ष के पक्ष को भी रखा जा सके. सोचिए, और कुछ समझाइए भी मुझे.
लेखक मनोज जैसवाल ईमेल manojjaiswal@gmail.com
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