फैसला भारत के न्यायिक इतिहास में मील का पत्थर है. आशा है कि इस फैसले से उस विवाद का समाधान हो जाएगा, जो पिछले 60 साल से भारत को परेशान कर रहा है. इस फैसले की सबसे अच्छी बात यह है कि पीठ के तीनों जज इस बात पर एकमत थे कि बाबरी मस्जिद के बीच वाले गुंबद, जहां अभी मूर्ति रखी है, वह जगह अंतिम रूप से हिंदुओं को दी जाएगी. इस तरह से विवाद के मूल प्रश्न का समाधान हो गया है और अब विवाद की कोई गुंजाइश नहीं बची है. 2 जजों की राय थी कि इस विवादित जमीन पर मुसलमानों का भी हक है (उस स्थान को छोड़कर, जहां कभी मुख्य गुंबद था और अभी मूर्ति रखी है). फैसले में कहा गया है कि मुसलमानों को कम से कम एक-तिहाई जमीन पर हक मिलना चाहिए. इस प्रकार कोर्ट ने मूर्ति वाली जगह को छोड़कर विवादित स्थान पर मुसलमानों का दावा भी स्वीकार कर लिया है.
लेकिन मैं मो. जफरयाब जिलानी के उस वक्तव्य से निराश हूं, जिसमें उन्होंने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की मंशा जाहिर की है. उन्हें उच्चतम न्यायालय में अपील करने का पूरा हक है, लेकिन मेरा मानना है कि एक समुदाय के रूप में मुसलमानों को यह बात महसूस करनी चाहिए कि यह आजाद भारत का ऐतिहासिक क्षण है. इस मौके पर उन्हें फैसला स्वीकार करके ऐतिहासिक उदाहरण पेश करना चाहिए.
अयोध्या मामला: कमर वाहिद नकवी की राय
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