
प्राय पढ़ते हैं कि ५ वर्ष से भी कम की बच्ची को किसी वहशी ऩे अपनी हवस का शिकार बना लिया.कितना लज्जास्पद और घृणित होता है,यह सुनना, पढना या पता चलना कि रक्षक ही भक्षक बन बैठे. शराब के नशे में पिता या पितृवत चाचा,भाई,मामा ,श्वसुर,ज्येष्ठ अपने कलेजे के टुकड़े को ,,अपनी गोदी में खिलाकर अपनी ही बच्ची ,छोटी बहिन,भतीजी,वधु का जीवन बर्बाद करने वाले बन गये.
उनका कुछ नहीं बिगड़ता क्योंकि लाज शर्म तो ऐसे लोगों के शब्दकोश का शब्द है ही नहीं.मारी जाती है पीडिता,जो स्वयं तो शर्मिन्दगी ,समाज की प्रताड़ना झेलती है,समाज में उसका जीना दूभर हो जाता है,यहाँ तक कि उसका पति भी उसका साथ छोड़ देता है उसके ,पालक भी उसको दोषी मानकर उससे किनारा कर लेते हैं.और वो दरिन्दे खिलखिलाते हैं उनके होंसलें और भी बुलंद होते हैं क्योंकि ऐसे मामलों में पीडिता रिपोर्ट भी दर्ज नहीं कराती.रिपोर्ट दर्ज करने पर सर्वप्रथम तो कुछ होने वाला नहीं और यदि कोई सुनवाई हुई भी तो अदालतों में पूछे जाने वाले अंतरतम को भी चीर कर रख देने वाले प्रश्न ? ऐसे प्रश्न जिनका उत्तर भरी अदालत के बीच देने की कल्पना कर ही मुख पर ताला लगा लिया जाता है.जब उसके परिजन ही उसका कोई दोष न होने पर उसे उपेक्षित कर देते हैं तो किससे आशा करे अभागी पीडिता.
समस्या आती है कि बलात्कारी के साथ क्या सलूक हो .आज जो प्रश्न उठ रहा है कि बलात्कारी को दण्डित किया जाना चाहिए या नहीं ? ऐसा नहीं कि समाज के लिए यह कोई नया अपराध का रूप है,कुत्सित प्रवृत्ति युक्त शक्तिशाली ,समर्थ लोगों की इन दुष्कर्मों में संलिप्तता सदा ही रही है,अपने अपमान का बदला लेने के लिए,शत्रु को नीचा दिखाने के लिए तथा अपने को सामर्थ्यवान सिद्ध करने के लिए यह अपराध समाज में सदा रहा है. सामंतों,राजाओं द्वारा किसी भी सुन्दरी को उठवा लेना ,पूरे पूरे खानदान मिट जाना इतना ही नहीं वंशानुगत रूप में ये विवाद चलते रहने आदि की घटनाएँ हम पढ़ते आये हैं.,समय के साथ मूल्यों में गिरावट आती गयी और बलात्कार सदृश अपराध रूपी वि.षबेल का विस्तार बहुत अधिक बढ़ गया..हाँ पूर्व में समाज के मध्य ऐसी घटनाएँ प्रकाश में नहीं आ पाती थी.अब मीडिया की सक्रियता व समाज में आये परिवर्तनों के कारण ऐसी घटनाएँ उजागर हो जाती हैं.(ऐसा नहीं कि सभी केस सामने आते हैं ,आज भी आम परिवारों में ऐसे मामलों पर पर्दा डाल दिया जाता है) मेरा मानना है कि दंड तो इतना भयंकर बलात्कारी को मिलना चाहिए कि वह स्वयं ही त्राहि त्राहि करे..दंड का विधान ऐसा होना चाहिए कि भविष्य में पापियों की आत्मा तक काँप जाए.ऐसी सोच मस्तिष्क में आने से पूर्व.
मानवाधिकारों का जहाँ तक प्रश्न है,इनके हनन की दुहाई देने वाले यह भूल जाते हैं,जो अपराधी इस कुत्सित प्रवृत्ति का आदि हो चुका है,वो कभी नहीं सुधरने वाला.उसके साथ कैसी मानवता ? कैसी दया?ऐसे अपराधी को बार बार अवसर दिया जाना मानवाधिकारों का हनन है,उन अभागी बहिनों,बच्चियों,के मानवाधिकारों का जिनके लिए दुर्लभ मानवजीवन अभिशाप बन जाता है.जिनमें से न जाने कितनी बहिनें अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर देती हैं.
उपरोक्त संदर्भ में ध्यान देने योग्य बात यही है कि ऐसे मामलों की तुरंत सुनवाई हो तथा अविलम्ब निष्पक्ष जांच हो और अपराधी को दंड कठोरतम मिले और जन जन तक उस दंड का समाचार पहुंचे.किसी भी सूरत में अपराधी को माफ़ी न मिले और साथ ही समाज को, परिजनों को भी अपनी सोच बदलनी होगी कि उनके द्वारा पहले से दुखी पीडिता के साथ सहानुभूति व प्रेमपूर्ण व्यवहार करें.
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शानदार पोस्ट मनोज जी
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