बुधवार

व्यंग्य : संता सिँह का नववर्ष संकल्प

at 16:16
स्कूल के दिनों में मेरा एक मित्र था-संता सिँह 'हट के'। नाम तो उसका संता सिँह ही था, 'हट के' तो हम मित्र उसे प्यार से बुलाते थे। वास्तव में उसे किसी ने समझा दिया था कि दुनिया में आगे निकलने के लिए ज़रा हट के सोचना पड़ता है, दुनिया में जो भी महान लोग हुए हैं, वे इसीलिए महान हैं कि वो ज़रा हट के थे। इसलिए उसे ज़रा हट के सोचने का भूत चढ़ गया। ऐसा भी नहीं कि वह हर बार हट के सोच ही पाता हो, लेकिन वह अपनी हर सोच को ज़रा हट के मानता ज़रूर था। हट के सोचने के कारण तो कई बार उसे समस्याओं का सामना भी करना पड़ता था। गणित के टीचर ने एक बार एक प्रश्न पूछा कि यदि एक हाथी एक बार में पाँच बच्चों को पार्क का चक्कर लगवाता है तो पच्चीस बच्चों को चक्कर लगवाने के लिए हाथी को कितने चक्कर लगाने पड़ेंगे? उत्तर में संता ने गणित की जगह दर्शन शास्त्र का सहारा लिया। लिखा- माना कि हाथी बहुत बलवान होता है, किन्तु उसके बल की भी एक सीमा है। पच्चीस बच्चों को एक ही साथ उठा पाना उसके बस की बात नहीं। अतः उसे एक से अधिक चक्कर लगाने पड़ेंगे। गुरुजी उसके इस अलग तरह के उत्तर से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने दो ज़बरदस्त झन्नाटेदार थप्पड़ इनाम स्वरूप उसे उसी समय नकद भेंट कर दिए। लेकिन सन्ता सिँह ऐसी घटनाओं से निराश नहीं होता था, क्योंकि महान लोग न तो रास्ते के प्रलोभनों से विचलित होते हैं और न ही कठिनाइयों से।
महानता का कोई भी नुस्खा उसे कहीं से भी मिलता तो वह उसे अपनाए बिना नहीं रहता था। महानता के बहुत सारे नुस्खों में से एक है-नववर्ष संकल्प। अतः इस स्वर्णिम नियम का पालन भी सन्ता सिँह पूरी निष्ठा से करता था। हर नववर्ष की पूर्वसंध्या पर वह एक संकल्प-पत्र बनाता और अपने कमरे में दीवार पर चिपकाता। रातभर में ही संकल्प-पत्र के पीछे की गोंद सूख जाती और नववर्ष की पहली सुबह वह ज़मीन पर गिर पड़ता और झाड़ू पर सवार होकर कचरे के साथ घर से निकल पड़ता-कभी वापस न आने के लिए। कई सालों तक मैं संता सिँह के नववर्ष संकल्पों के विषय में सुनता रहा किन्तु उनके दर्शन का सौभाग्य मुझे नहीं मिला। एक जिज्ञासा मन में बनी ही रही। एक वर्ष मैं इसी जिज्ञासा के वशीभूत होकर नववर्ष की पूर्वसंध्या पर ही उसके घर जा धमका। संकल्प-पत्र तैयार हो चुका था, उसके पीछे गोंद लगाई जा रही थी। मैंने संता को हैलो कहा और उसके पास बैठ गया। पाँच मिनट की कड़ी मेहनत के बाद जब संकल्प-पत्र दीवार की शोभा बन गया, तब मेरी हैलो का जवाब आया। मैं कुछ पूछता इससे पहले ही वह बोल उठा, नए साल के लिए कुछ संकल्प लिए हैं। देखो तो।
मैंने ध्यान से देखा, कुछ लिखा तो था, लेकिन क्या? यह पढ़ने में मैं असमर्थ था। बहुत पुरानी जिज्ञासा थी, इसलिए बहुत मेहनत करके मैंने उन संकल्पों को पढ़ा। पढ़ने से जिज्ञासा शांत नहीं हुई, उल्टी और भड़क उठी। जैसे प्यासे को बर्फ़ीला ठंडा पानी पिलाने से उसकी प्यास भड़क उठती है। कुल छः संकल्प थे।
१. कोई संकल्प नहीं लूँगा, यदि ले लिया तो उसका पालन नहीं करूँगा, यदि पालन कर लिया तो पछताऊँगा नहीं।
२. सुबह जल्दी उठना शुरु करूँगा।
३. रिश्वत नहीं लूँगा।
४. दिल लगाकर पढ़ूँगा।
५. सड़क पर केला नहीं खाऊँगा।
६. रात को माईकल जैक्सन का गाना नहीं गाऊँगा।
मैंने उन संकल्पों को दो-तीन बार पढ़ा। कुछ तो समझ में आए, लेकिन बाकी मेरी बुद्धि से ऊपर की बातें थीं। प्रश्नवाचक चिह्न जैसी शक्ल बना कर मैंने संता की तरफ़ देखा। वह इतराकर बोला, मेरे संकल्प ज़रा हट के हैं। देखो- पहला संकल्प तो यही है कि इस साल कोई संकल्प नहीं लूँगा। यदि ले लिया तो उसका पालन नहीं करूँगा। यदि पालन कर लिया तो पछताऊँगा नहीं।
यानी?
यानी कुछ भी हो जाए, पछताना नहीं है।
और संकल्प न लेने वाली बात?
देखो मैंने पहले ही बता दिया कि ज़रा हट के है। इस संकल्प की मुख्य बात तो न पछताने में है, बाकी तो उसकी भूमिका है। कोई भी महान बात बिना भूमिका के जमती नहीं है। तुमने बड़े लेखकों की किताबें नहीं देखीं? सौ पन्ने की किताब में तीस पन्ने तो भूमिका के ही होते हैं। जितनी बड़ी भूमिका, समझो उतनी ही महान किताब है।
मैंने अभिनय किया कि मुझे सब समझ में आ गया है। तब उसने आगे शुरू किया। दूसरा संकल्प तो बहुत सरल है कि इस साल मैं सुबह जल्दी उठना शुरु करूँगा।
कितने बजे?
सात पच्चीस पर।
सात तीस पर तो स्कूल लगता है। और तुम सात पच्चीस को जल्दी कह रहे हो?
सात तीस से तो जल्दी है न। अभी तो मैं सात तीस पर ही उठता हूँ।
लेकिन पाँच मिनट पहले उठने से क्या. . .?
ए जर्नी ऑफ़ थाउजैंड माइल्स बिगिन्स विद अ सिंगल स्टेप। उसने बड़े विश्वास से कहा।
लेकिन इतने छोटे स्टेप में चलोगे तो सूर्योदय से पहले उठने में पच्चीस साल लगेंगे।.. वैसे एक बात बताओ। पिछले साल सात पैंतीस पर उठते थे क्या?
सात पच्चीस पर। संकल्प लिया था कि सात बीस पर उठा करूँगा और उठने लगा सात तीस पर। सभी संकल्प पूरे तो नहीं हो पाते न। इसीलिए मैंने इस बार एक ऐसा संकल्प भी लिया है, जिसे पूरा होने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती।
कौन सा?
रिश्वत न लेने का। इस साल मैं रिश्वत नहीं लूँगा।
लेकिन हम स्टूडेंट्स को रिश्वत देगा कौन?
इसीलिए तो इस संकल्प के टूटने की कोई संभावना नहीं है।
वो तो ठीक है, लेकिन यदि बाद में सरकारी ऑफ़िसर बन गए तो?
ये संकल्प इसी साल के लिए हैं, सारी उम्र के लिए नहीं।
बाक़ी तो ठीक है, लेकिन तुम्हारे इस चौथे संकल्प की तुम्हें सचमुच ज़रूरत है। दिल लगाकर पढ़ना तुम्हारे लिए बहुत ज़रूरी है। विशेषतः गणित और विज्ञान में।
गणित और विज्ञान? इन्हें कौन पढ़ेगा?
तो क्या पढ़ोगे?
जो वह लिखेगी।
कौन लिखेगी?
जिससे दिल लगाऊँगा। और कौन?
ओह ठीक.. ठीक। वैसे वो लिखेगी क्या? किसी लेखिका से दिल लगा रहे हो क्या?
लेखिका तो नहीं है। लेकिन प्यार में प्रेम पत्र तो लिखेगी ही न।
प्रेम पत्र तुम नहीं लिखोगे?
लिख सकता हूँ, लेकिन लिखने का कोई लाभ नहीं।
क्यों?
अपनी लिखाई को मैं ख़ुद बड़ी मुश्क़िल से समझ पाता हूँ। वो क्या समझेगी?.. पिछले साल मैंने एक लड़की को प्रेम-पत्र लिख कर दिया था। उसने पढ़ने की कोशिश की, सहेलियों की सहायता भी ली, लेकिन सब व्यर्थ। किसी ने सलाह दी कि कैमिस्ट हर तरह की लिखाई पढ़ सकते हैं। वह पत्र लेकर एक कैमिस्ट के पास गई। कैमिस्ट ने साढ़े तीन सौ रुपए की दवाएँ हाथ में पकड़ा दीं। बड़ी मुश्क़िल से उसने कैमिस्ट को समझाया कि यह पत्र है, डॉक्टर की पर्ची नहीं। अंत में वह पत्र लेकर मेरे ही पास आई और बोली कि भैया तुम्ही बताओ कि इस काग़ज़ पर आख़िर तुमने लिखा क्या था? मुझे उस पर बहुत दया आई। मैंने ख़ुद उसे पढ़ने का बहुत प्रयास किया, लेकिन पढ़ नहीं पाया। बहुत फ़ज़ीहत हुई। उसके बाद मैंने लव-लैटर लिखने का आइडिया छोड़ ही दिया। पढ़ने तक ही ठीक है।
ठीक.. लेकिन यार तुम्हारा यह पाँचवाँ और छठा संकल्प कुछ अजीब हैं। सड़क पर केला नहीं खाऊँगा। रात को माईकल जैक्सन का गाना नहीं गाऊँगा। ये केला नहीं खाने का संकल्प किसलिए?
यह संकल्प सुरक्षा को ध्यान में रखकर लिया है मैंने।
सुरक्षा.. कैसे? केला खाने का सुरक्षा से क्या संबंध?
ऐसा है कि पहले जब मैं छोटा था, तो सड़क पर चलते हुए केला खाता था और छिलका आगे की ओर फैंक देता था, उसी छिलके से फिसलकर मैं गिर पड़ता था। पिछले साल मैंने संकल्प लिया कि छिलका आगे नहीं पीछे फैंकूँगा। तब से सत्रह बार पिट चुका हूँ। केला खाकर छिलका पीछे फैंकता हूँ। पीछे आने वाला आदमी फिसल के गिरता है और उठकर मुझे पीटने लगता है। इसलिए इस बार इस समस्या का समूल नाश करने के लिए यह संकल्प लिया है।
यह बात तो समझ में आ गई, लेकिन यह माईकल जैक्सन के गाने वाला संकल्प भी मेरी समझ से बाहर है। तुम्हें तो गाने का बहुत शौक था और माईकल जैक्सन ही तो तुम्हारा प्रिय गायक है। उसी के गीत न गाने की प्रतिज्ञा क्यों? इस शंका का भी समाधान करो।
यह संकल्प मैंने किसी और के संकल्प-पत्र से प्रभावित होकर लिया है।
मैंने सोचा ज़रूर किसी और महान व्यक्ति के प्रभाव में यह संकल्प लिया गया होगा। जिज्ञासावश पूछा, किसके?
मेरे पड़ोस में एक पहलवान रहता है-रामू पहलवान हड्डी विशेषज्ञ। जवानी में दूसरों की हड्डियाँ तोड़ने के लिए प्रसिद्ध था। आजकल हड्डियाँ जोड़ने का काम करता है। उसने अपने इस बार के संकल्प-पत्र में लिखा है कि जब भी मैं रात को माईकल जैक्सन का गाना गाऊँगा, उस रात वो मेरी एक हड्डी ज़रूर तोड़ा करेगा। बस उसी भीष्म-प्रतिज्ञा से प्रभावित होकर मैंने यह संकल्प लिया कि कुछ भी हो जाए, रात को माईक्ल जैक्सन का गाना नहीं गाऊँगा।
लेकिन उसने ऐसी प्रतिज्ञा क्यों की? तुमने पूछा नहीं उससे?
पूछा था। कहने लगा- बेटा, जब तुम माईकल जैक्सन का गाना गाते हो, तो शहर के कुत्तों को यह भ्रम हो जाता है कि यमदूत किसी के प्राण ले रहे हैं और मरने वाला बेचारा दर्द से कराह रहा है। इसीलिए वे सभी मिलकर हमारी गली में सहानुभूति स्वरूप रोते हैं। इससे मेरी नींद में ख़लल होता है और मेरा कुश्ती करने का मन होने लगता है। इसलिए यदि भविष्य में तुम माईकल जैक्सन का गाना गाकर अपना शौक पूरा करोगे तो मैं भी अपना कुश्ती करने का शौक पूरा कर लिया करूँगा।
थोड़ी देर चुप रहने के बाद संता बोला, तुम ही कहो ऐसी परिस्थियों में मेरा यह संकल्प युक्तिसंगत नहीं है क्या?
मैंने सहमती में सिर हिलाया। वास्तव में मैं उसके इस संकल्प की युक्ति से पूरी तरह सहमत था और आश्वस्त भी था कि यह संकल्प अवश्य ही पूरा होने वाला है। आज भी जब नववर्ष की पूर्वसंध्या पर कोई संकल्प लेता है तो मुझे संता सिँह 'हट के' का संकल्प-पत्र बहुत याद आता है।
मनोज जैसवाल 

1 टिप्पणी