शनिवार

खतरनाक भी हो सकती हैं सोशल नेटवर्किंग साइट्स

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मनोज जैसवाल : वैसे तो भारत में अनेक सोशाल नेटवर्किंग साइट्स चल रही हैं, पर उनमें से लोकप्रिय फेसबुक, ऑरकुट और ट्विटर को ही कहा जा सकता है। जवान, बूढ़े एवं बच्चे सभी आज इसके दीवाने हैं। युवाओं के बीच इसकी दीवानगी व लोकप्रियता अद्भुत है। विश्‍व को एक गाँव में तब्दील करने में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है। आज आप एक छोटे से गाँव में रहकर भी अपने को अपने रिश्‍तेदारों तथा दोस्तों से जोड़कर रखने की कल्पना को साकार कर सकते हैं।

इसकी वजह से आपको कभी भी अपने अजीज से बिछड़ने का अहसास तक नहीं होगा। इसकी सहायता से आप हर रोज, हर पल अपने चाहने वालों के साथ रह सकते हैं।

अपनी खुषी व गम को उनके साथ बाँट सकते हैं। रोजगार चाहने वाला या व्यापार करने की चाहत रखने वाला या फिर अपनी किसी नई रचना के प्रचार-प्रसार करने की तमन्ना रखने वाला या प्रकाषक से नाउम्मीद होने के बाद अपनी किताब को स्वंय प्रकाषित करके उसे बेचने के लिए उत्सुक रहने वाला हर षख्स आसानी से सोषल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से अपने मन की मुराद को पुरा कर सकता है।

आजकल तो पुलिस भी सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए अपराधियों को पकड़ रही है। इसकी मदद से भागम-भाग की जिंदगी के बीच भी लोग अपने पुराने दोस्तों से मिल रहे हैं। उनसे संवाद कायम करके फिर से संबंधों की गर्माहट को पुर्नजीवित कर रहे हैं। संवादहीनता की स्थिति को समाप्त करने में सोषल नेटवर्किंग साइट्स का योगदान सचमुच अतुलनीय है। सच कहा जाए तो यह संप्रेषण का अमूल्य जरिया बन चुका है। भारत के संदर्भ में बात करें तो यहाँ सबसे पहले ऑरकुट सबकी पहली पंसद थी, बाद में उसकी जगह फेसबुक ने लिया और अब ट्विटर का जमाना है।

जाहिर है जिस तरह हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, ठीक उसी तरह सोशल नेटवर्किंग साइट्स से लाभ के साथ-साथ नुकसान भी हैं। ध्यातव्य है कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स में किसी के पहचान का अंकेक्षण नहीं किया जा सकता है और न ही आसानी से अपराधी प्रवृति वाले इसके सदस्यों की करतूतों पर आप अंकुश लगा सकते हैं। इस मामले में साइबर लॉ अभी भी बहुत कमजोर है। भारतीय पुलिस की साइबर षाखा न तो अधतन तकनीक से लैस है और न ही तकनीकी तौर दक्ष व सक्षम। इस कारण से इसके बरक्स में पुलिस की विवेचना का सरलता से कभी भी कोई परिणाम नहीं निकल पाता है।

इंसान से बड़ा कोई जानवर नहीं है, इस बात को साबित अब तक लाखों लोग सोषल नेटवर्किंग साइट्स के द्वारा घिनौना अपराध करके कर चुके हैं। अपराधों के मुमकिन होने के पीछे मूल कारण किसी भी सदस्य के पहचान की वास्तविकता पता नहीं चलना है। उल्लेखनीय है कि विविध सोषल नेटवर्किंग साइट्स में खुले फर्जी खातों की वास्तविक संख्या की जानकारी किसी को भी नहीं है।

लिहाजा अगर आप इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स के सदस्य हैं और किसी उलझन में उलझने से बचना चाहते हैं तो आपको ही अपने तथाकथित दोस्तों के बीच में कौन दोस्त की षक्ल में भेड़िया बना हुआ है, इसका पता लगाना होगा, अन्यथा किस लड़की की अश्‍लील सीडी कब इंटरनेट पर डाली जाएगी या फिर कब किस लड़की को ब्लेकमेल किया जाएगा, इसका अंदाजा न तो आप लगा पायेंगे और न ही पुलिसवाले।

आज की तारीख में आतंकवादी से लेकर गली के गुंडे सभी इन सोशल साइट्स से अपने धंधे को चमका रहे हैं। वर्तमान हालात में जरुरत इस बात की है कि सरकार कम-से-कम इन पर अपना पूरा नियंत्रण रखने में सक्षम हो। सक्षम होना तथा अपनी सक्षमता का उपयोग करना दो चीज है। भारत एक लोकतांत्रिक देष है, वह कभी भी चीन की तरह तानाशाह नहीं हो सकता है। पर अफसोस की बात यह है कि भारत सरकार अभी भी तकनीकि तौर पर पिछड़ी हुई है। यहाँ की साइबर पुलिस की व्यवस्था वाकई में बहुत लचर है। ऐसे में सोषल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से लगातार अपराध का होते रहना फिलवक्त लाजिमी है।

अभी कुछ दिनों पहले ट्विटर पर बने एआईडीएमके के महासचिव जे जयललिता के फर्जी खाता का खुलासा हुआ। गौरतलब है कि जया के इस खाते में जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी एवं प्रसिद्ध स्तंभकार एस गुरुमूर्ति बतौर फॉलोवर्स शामिल हैं। हालांकि कुल फॉलोवर्स की संख्या 500 से भी ज्यादा है। जे जयललिता के इस खाते में बेहद ही अहम् बातें लिखी गई हैं। इस खाते में यह भी लिखा गया था कि 2 फरवरी को कोई घटना घट सकती है।

ज्ञातवय है कि 2 फरवरी को ए राजा की गिरफ्तारी के बाद पुनः इस खाते में लिखा गया कि मैंने क्या कहा था? इसी खाते में लिखा गया कि 'केंद्रीय मंत्री (कपिल सिब्बल) को स्वामी का बकाया पैसा देना ठीक नहीं है" इसके प्रत्यूत्तर में स्वामी ने लिखा कि 'उनका पैसा आईआईटी, दिल्ली के समय से बकाया है। मामला नहीं सुलझने पर वे अदालत का सहारा लेंगे"।

जानकारों का मानना है कि जे जयललिता अपने विचार को इस तरह से व्यक्त नहीं कर सकती हैं। यह काम उस व्यक्ति का हो सकता है जो जे जयललिता का खास है या रहा है। इस खाता के फर्जी होने की संभावना इसलिए भी अधिक है, क्योंकि जे जयललिता ने अपने नाम के नीचे यह डिस्क्लेमर दिया है कि 'यह पैरोडी है"। स्तंभकार एस गुरुमूर्ति भी इस तर्क से सहमत हैं। उनका कहना है कि आरंभ में ट्विटर पर जे जयललिता का बना खाता असली लग रहा था, पर मैं पूरी तरह से आष्वस्त नहीं था। इसलिए असलियत जानने के लिए मैंने कुछ निजी संदेष दिया और संदेह होने पर खुद को उससे अलग कर लिया।

लब्बोलुबाव के तौर पर कहा जा सकता है कि सोषल नेटवर्किंग साइट्स पर दोस्त बनाने में जल्दबाजी नहीं करें। अनजान लोगों से कभी भी दोस्ती नहीं करें। अपने स्तर पर छानबीन करें तथा आष्वस्त होने के बाद ही किसी के दोस्त बनाने के आग्रह को कुबूल करें। इस बाबत अपने जानने वालों पर संदेह करने में भी कोई बुराई नहीं है। अपने फॉलोवर्स तथा दूसरे का फाॅलोअर्स बनने से पहले भी सावधानी बरतें, क्योंकि आपकी गलती या लापरवाही आपको एक ऐसे दलदल में ढकेल सकती है, जहाँ से निकलना शायद संभव न हो।

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