एक अंतर्राष्ट्रीय समाजसेवी संस्था की तरफ से करवाए गए सर्वेक्षण में यह पता चला कि कुपोषण का शिकार हर तीसरा बच्चा भारतीय है, अर्थात हम अफ्रीका जैसे अल्पविकसित और पिछड़े देश से भी गए-गुजरे हैं। प्रधानमंत्री ने बेबाकी से स्वीकार किया है कि देश के 42 फीसदी से ज्यादा बच्चों का वजन सामान्य से कम होना शर्मनाक है। इस सर्वेक्षण में नौ राज्यों के 112 जिलों और 73 हजार घरों के आधार पर एक लाख बच्चों और 74 हजार माताओं को शामिल किया गया है। यह भी पाया गया है कि पूरी तरह निरक्षर माताओं के बच्चों की स्थिति और भी बुरी है। मेरा सुझाव यह है कि इसी समाजसेवी संस्था को देश में सत्ता के शिखरों पर बैठे हुए लोगों का भी स्वास्थ्य निरीक्षण कर यह देखना चाहिए कि कितने राजनेताओं, शासकों और धार्मिक संस्थाओं के मुखिया बने विशिष्ट व्यक्तियों का वजन आवश्यकता से ज्यादा है। तभी प्रधानमंत्री जी को यह उत्तर मिल जाएगा कि कुपोषण और अति पोषण में कितनी चौड़ी खाई है और
देश भर के करोड़ों बच्चों का वजन कम क्यों है? यह अच्छा लगा कि प्रधानमंत्री ने इसे राष्ट्रीय शर्म का विषय माना है। अगर शर्म महसूस हो ही गई है, तो देश के शासक ऐसा काम अवश्य करेंगे, जिससे हमें वैश्विक मंचों पर शर्मिंदा होकर सिर न झुकाना पड़े। सरकार ने वह रिपोर्ट भी पढ़ ली होगी कि देश में दूध नकली मिल रहा है, उसमें यूरिया जैसी मिलावट जोरों पर है, पर अभी तक यह नहीं बताया कि इस मिलावट के लिए दोषी कौन है। आखिर किसकी शह पर मिलावटखोर अपना धंधा चला रहे हैं? पानी बेचकर दूध का दाम कमाने की चाह, धन का अति लोभ और अधिकतर राजनेताओं का संरक्षण इस देश में सब तरह की मिलावट का मौका देता है। चाय की पत्ती से लेकर पानी तक तो इस देश में शुद्ध नहीं मिलता, जिसका खामियाजा अंततः आम लोगों को भुगतना पड़ता है। यानी आम आवाम के स्वास्थ्य के साथ ही खिलवाड़ की कोशिश होती है। अगर सरकार को खुद आंखों से नहीं देखना है और मोटी फीस भरकर करवाए गए आंकड़ों पर ही आश्रित रहना है, तो प्रधानमंत्री के लिए चिंतित और लज्जित होने का एक समाचार और आ गया है। सिंगापुर की एक सलाहकार कंपनी द्वारा किए गए सर्वेक्षण में बताया गया है कि भारतीय नौकरशाही दुनिया में सबसे गई-गुजरी हालत में है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत की अकुशल नौकरशाही के खिलाफ देश के उद्योगपतियों को सबसे अधिक शिकायत है। मेरा अपना अनुभव है कि सेवानिवृत्ति के बाद भी राज्य सरकारों में उच्च पदों पाने की प्रतीक्षा में बैठे बहुत से यह अधिकारी वह सब कुछ करने को तैयार हो जाते हैं, जिसको रोकने के लिए इनकी नियुक्ति की गई है। इसलिए आज की आवश्यकता यह है कि जनता भी जागे और जनता के प्रतिनिधि भी कभी-कभी उन दरवाजों तक अवश्य पहुंचें, जहां भूख, बेबसी, बीमारी और शोषण है। सरकार को अभी से सावधान होना होगा कि देश की जिस जवानी को सौ-पचास रुपये रोज पर घंटों काम करवाकर शोषित-पीड़ित किया गया है, लंबी सेवा करने के बाद भी जो अब भी एक सौ रुपया प्रतिदिन पाने के लिए तरसते हैं। उनका खाली पेट एवं अतृप्त इच्छाएं जिस दिन जाग पड़ेंगी, उस दिन आंकड़े नहीं, देश का दृश्य ही भयावह हो जाएगा। देर आए दुरुस्त आए, प्रधानमंत्री जी ने बच्चों की दशा पर चिंता तो प्रकट की, इसे राष्ट्र के लिए शर्म का विषय तो माना। अक्षम नौकरशाही की खबर वह पा ही चुके होंगे। अब प्रतीक्षा यह रहेगी कि प्रधानमंत्री तथा उनके सहयोगी कब अपने भारत देश को इस शर्म से मुक्त करेंगे, और आम लोगों को खुशहाली के रास्ते पर ले जाएंगे।
मेरे तकनीकी लेख यहाँ देखें।
देश भर के करोड़ों बच्चों का वजन कम क्यों है? यह अच्छा लगा कि प्रधानमंत्री ने इसे राष्ट्रीय शर्म का विषय माना है। अगर शर्म महसूस हो ही गई है, तो देश के शासक ऐसा काम अवश्य करेंगे, जिससे हमें वैश्विक मंचों पर शर्मिंदा होकर सिर न झुकाना पड़े। सरकार ने वह रिपोर्ट भी पढ़ ली होगी कि देश में दूध नकली मिल रहा है, उसमें यूरिया जैसी मिलावट जोरों पर है, पर अभी तक यह नहीं बताया कि इस मिलावट के लिए दोषी कौन है। आखिर किसकी शह पर मिलावटखोर अपना धंधा चला रहे हैं? पानी बेचकर दूध का दाम कमाने की चाह, धन का अति लोभ और अधिकतर राजनेताओं का संरक्षण इस देश में सब तरह की मिलावट का मौका देता है। चाय की पत्ती से लेकर पानी तक तो इस देश में शुद्ध नहीं मिलता, जिसका खामियाजा अंततः आम लोगों को भुगतना पड़ता है। यानी आम आवाम के स्वास्थ्य के साथ ही खिलवाड़ की कोशिश होती है। अगर सरकार को खुद आंखों से नहीं देखना है और मोटी फीस भरकर करवाए गए आंकड़ों पर ही आश्रित रहना है, तो प्रधानमंत्री के लिए चिंतित और लज्जित होने का एक समाचार और आ गया है। सिंगापुर की एक सलाहकार कंपनी द्वारा किए गए सर्वेक्षण में बताया गया है कि भारतीय नौकरशाही दुनिया में सबसे गई-गुजरी हालत में है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत की अकुशल नौकरशाही के खिलाफ देश के उद्योगपतियों को सबसे अधिक शिकायत है। मेरा अपना अनुभव है कि सेवानिवृत्ति के बाद भी राज्य सरकारों में उच्च पदों पाने की प्रतीक्षा में बैठे बहुत से यह अधिकारी वह सब कुछ करने को तैयार हो जाते हैं, जिसको रोकने के लिए इनकी नियुक्ति की गई है। इसलिए आज की आवश्यकता यह है कि जनता भी जागे और जनता के प्रतिनिधि भी कभी-कभी उन दरवाजों तक अवश्य पहुंचें, जहां भूख, बेबसी, बीमारी और शोषण है। सरकार को अभी से सावधान होना होगा कि देश की जिस जवानी को सौ-पचास रुपये रोज पर घंटों काम करवाकर शोषित-पीड़ित किया गया है, लंबी सेवा करने के बाद भी जो अब भी एक सौ रुपया प्रतिदिन पाने के लिए तरसते हैं। उनका खाली पेट एवं अतृप्त इच्छाएं जिस दिन जाग पड़ेंगी, उस दिन आंकड़े नहीं, देश का दृश्य ही भयावह हो जाएगा। देर आए दुरुस्त आए, प्रधानमंत्री जी ने बच्चों की दशा पर चिंता तो प्रकट की, इसे राष्ट्र के लिए शर्म का विषय तो माना। अक्षम नौकरशाही की खबर वह पा ही चुके होंगे। अब प्रतीक्षा यह रहेगी कि प्रधानमंत्री तथा उनके सहयोगी कब अपने भारत देश को इस शर्म से मुक्त करेंगे, और आम लोगों को खुशहाली के रास्ते पर ले जाएंगे।
मनोज जैसवाल |
---|
मेरे तकनीकी लेख यहाँ देखें।
सार्थक और जरुरी पोस्ट आँखें खोलने में सक्षम अच्छी जानकारी आभार
जवाब देंहटाएंसुनील कुमार जी,पोस्ट पर राय के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन आलेख शायद सरकार में बैठे लोग चेत जाएँ
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन आलेख
जवाब देंहटाएं